बचपन की अनुभूति
पल-पल ख्वाहिश को बदलती है
कुछ वजिब ख्वाहिश हो
तो बरकत लाती है,
ऐसे ही संस्कार मेरी मां ,
भारत मां के लिए भरती है
ख्वाहिश पूरी हो तो ,
नींद कहां आती है |
ना पूरी हो ख्वाहिश,
तो नींद आंखों में कट जाती है|
जब दुश्मन का सामना हो ,
शिखर कैंप पर हिमस्खलन हो
देश सुरक्षा में,
एक पिंड मै बन जाऊं
कितना भी जोखिम हो ,
प्रयास करूँ , इतना सारी शक्ति लगा जाऊं
बस मेरी ख्वाहिश है ,
सरहद पर दम निकले,
सबको गर्व मुझ पर हो
और ध्वज छाती पर हो
हे ईश्वर ,इस ख्वाहिश के बाद ,
कोई ख्वाहिश ना बाकी हो
वर्षा शर्मा
दिल्ली
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