जल बिन मछली

नारी जीवन की दुविधा को दर्शाती हुई लघुकथा

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 08 Mar, 2021 | 1 min read
#equality# #culture



आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान लेने के लिए गई हुई है मीना | उभरती लेखिका के रूप में आज उसकी पुस्तक का विमोचन था और उसे ट्रॉफी से सम्मानित किया गया| बड़े अच्छे से तैयार होकर गई| सभी ने बहुत फोटो खींचे बड़ी सी बिंदी में लग भी तो वह शानदार रही थी| खुश तो वह भी थी लेकिन मन में बहुत दुविधा चल रही थी| इस सम्मान के बदले उसे कितना कुछ छोड़ना पड़ा| उसका मन एक मछली की तरह तड़प रहा था| सुबह ही पति( वरुण) ने अपना फरमान सुना दिया| यह लिखना , लिखना सब बेकार की बातें हैं मेरे घर में रहने पर, तुम्हें सोचना होगा| या तो मुझे  चुनो या अपने लेखन को| इसी उहापोह की स्थिति में उसे जो सही लगा वह घर से निकल गई| और अब सम्मान लेकर गजब का आत्मविश्वास आ गया है| लेकिन कोई जॉब भी तो नहीं करती| फिर बच्चों के बिना कैसे अपनी जिंदगी जी पाएगी| और घर की तरफ बोझिल कदमों से चल पड़ी| पति ने ताना कसा आ गई अकल ठिकाने, कुछ नहीं मिलता यह चार अक्षर लिख कर| तभी कुछ प्रेस वाले उनके घर आ गए और उसका इंटरव्यू लेने के लिए उसकी बुक बहुत ज्यादा फेमस हो गई| और उसको रॉयल्टी में काफी रकम मिली| अब पति उसके साथ मिलकर फोटो खींचा रहे हैं और खुश है| उसे ऐसा लग रहा है जैसे किसी एक्वेरियम में है और बहुत सारी मछलियां उसके आसपास है |तभी किसी ने पूछा आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे| वह कुछ कहती है उससे पहले ही पति महाशय बोल उठे| यह सब परिवार के साथ के कारण ही संभव हुआ| बेबसी से पति को ध्यान से देख रही है क्या वह वही आदमी है........ और उनकी हां में हां मिला दी..... 


वर्षा शर्मा दिल्ली

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Varsha Sharma

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