त्याग
उफ्फ भोत दर्द हो रा है
यू कांटे का दर्द ना है , थारी याद आ री है|
कांटे मेरा रस्ता ना रोक सकें...हां याद है, जब तमने मेरे सै कहा था। रे मेरे साथ डगर बहुत मुश्किलों भरी होगी जब फौज में चला जाऊँगा अर सारी जिम्मेदारी को निभाते हुए अपना भी ध्यान रखना होगा तुझे , नहीं हारूँगी मैं इन शूल भरी राहों पर अनवरत थारे कदम से कदम मिला कै चलूंगी तम देश की रक्षा करना मैं पूरे घर की रक्षा करूंगी,
ओ हो जल्दी करूँ.....मां बाबूजी प्यासे होंगे
पानी का कलश हाथ मे लेके पैर से काँटा निकाल फेंका,, अर चल दी अपने फर्ज की लिया|
हां उसका त्याग हमेशा अधूरा रह जा है जिसेइ हम नहीं पहचान पावे वे पीछे रहकर देश की रक्षा मैं अपना फर्ज निभावे
वर्षा शर्मा
दिल्ली
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