,"नहीं मां मुझे यह सब्जियां नहीं खानी , पिज़्ज़ा खाना है ,रोज रोज वही सब्जी, मुंह बनाते हुए वैभव ने कहा अभी बेटा तुम्हें यह आंधी के आम लग रहे हैं | एक तो महामारी मे लोगों के लिए एक-एक पल पहाड़ की तरह भारी हो रहा है कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं , तब कहीं जाकर लोगों को रोजी-रोटी मिलती है| और तुम्हें आसानी से मिल रहा है तो तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने हैं| तभी वैभव ने देखा कि उसकी कामवाली का बेटा जोड़-तोड़ करके अपनी पुस्तक को ठीक कर रहा है| अब उस पर घडो पानी पड़ गया वह तो वैसे ही बिना बात तिल का ताड़ बना रहा था |
तभी दादा जी ने न्यूज़ लगा दी जिसको देखकर वैभव को एहसास हुआ कि लोग गली-गली मारे मारे फिर रहे हैं| इसी रोटी को खाने के लिए, और मां भी तो इतनी मेहनत करती हैं कि थक कर चूर हो जाती है| अब वैभव को बहुत पछतावा हुआ उसने छोटे-छोटे काम करने का बीड़ा उठाया, उसने अपनी पुरानी पुस्तक कामवाली के बेटे को देकर श्रीगणेश किया| यह देखकर मां की खुशी का ठिकाना नहीं रहा
वैभव बोला कि मैंने यह बात गांठ बांध ली है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाना सही नहीं होता | और चुपचाप सब्जी रोटी खाने के लिए बैठ गया
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