म्हारी तो सारी ज़िंदगी घर के कामों मे ही निकल गी और आजकल की बहुओ को देखो सुबह सुबह महारानी तैयार होकर दफ़्तर के लिए निकल ली घर का कोई ख्याल हि नी है, गुस्से से सविता बोली। शाम को बहू उसके लिए एक कंप्यूटर लेकर आई और बोली मम्मी आपको लिखने का शौक है ना अब आप इसपे लिख कै अपना शौक पूरा कर सको , तमने हमेशा दुसरो के लिए ज़िंदगी जी हैं अब अपने लिए जियो। मैं सिखा ऊंगी कंप्यूटर चलाना। बहू की इस बात से सविता स्तब्ध थी। उसे एहसास हो गया की वो बहू के बारे में कितना गलत सोच री थी। अब खुद को ही कह री है मै गलत थी
यें आजकल की छोरियां तो रिश्ते भी निभा लै और काम भी कितना बढ़िया करें| फेर क्या दिक्कत है हमें इन लोगो से
अर अपने बारे मे सोच न का तो सबका हक हौ
और बहु के सिर पर हा थ फेरते हुए आँखे भर आई
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