आज बच्चों को छोड़ने कोचिंग में आये है| प्रिया और विभा दोनों बातें कर रही हैं |बातें करते-करते ससुराल की बात चल पड़ी बोली ,"अरे मुझे तो रहने दो मेरी सासू मां मुझे बांझ कहते हैं| है !!!बात क्या हुई ??तुम अपनी बेटी को छोड़ने , आई हो तो !!है तो बेटियां ना मेरी सासू मां कहती हैं कि "बेटियों की मां का मुंह नहीं देखना चाहती है वह ,"अरे यह तो पहली बार सुन रही हूं दो दो बच्चों की मां को बांझ बुलाया जा रहा है तुम कुछ बोलती नही|, "बोलती नहीं तभी तो उनकी हिम्मत हो जाती है और खुद की भी बेटी नहीं है तो वह क्या किसी का दुख समझेंगे मुझे कहती हैं कि तू क्या करेगी इतने पैसे का बेटा अच्छी जॉब पर है और तेरे पास तो दो बेटियां हैं बताओ "इनको क्या मैं भूखा मार दूं| जिन को पैसे की जरूरत नहीं इनको पढ़ाई ना, कराओ |,"हे भगवान आज के जमाने में ऐसी सोच फिर आप कुछ कहते क्यों नहीं |अरे क्या !!!!पतिदेव बोलते हैं कि तू जवाब मत दे मम्मी है उनकी पुरानी सोच नहीं बदल सकते लेकिन हम चेंज हो सकते हैं |ऐसा कैसे आप बोलो कि बेटियों को भी परवरिश में पैसे का उतना ही जरूरत होती है" अरे छोटे देवर की शादी करा दी अपने आप सुधर जाएंगे |वह तो मुंह पर बोल देती है जो चीज ना पसंद हो| हां तो सही है कम से कम दुख तो ना सहेगी आपने तो किया भी और दुख भी सहा "अब हमें समझने लगे हैं लेकिन कह रही हैं कि अब जो चाहे छोटे वाले की एक बेटी हो जाए 5 साल हो गए शादी को कुछ तो हो!!!देखो हमें तो बेटी होते हुए भी, बांझ बोल रही थी शुरू शुरू में तो बहुत खराब लगता था| मेरी मम्मी ने भी कुछ नहीं कहा उन्होंने भी हमेशा यही सलाह दी कि कोई बात नहीं बड़े हैं तो सुनो| ना आप ही बताओ क्या किया जाए ऐसे लोगों का अब धीरे-धीरे समझ आ रही है |लेकिन हमारी तो जिंदगी ही बीत गई बच्चे नहीं सुनते आजकल तो ज्यादा दिन नहीं रुकती |उनके साथ में चली जाती हैं |जल्दी जल्दी आ कर और कुछ भी कहो बेटा तो आखिर बेटा है मां को देखकर मां के रंग में रंग जाता है हम तो अपना समय निकाल रहे हैं| यह बताते बताते प्रिया का रोंगटे खड़ा हो गया और आंखों में आंसू आ गई इसी से पता लगता है कि उसने कितना दुख सहा है|
विभा जो अब तक उसकी बातें सुन रही थी आश्चर्यचकित रह गई कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं फिर लोग बेटों को दोष देते हैं कि बच्चे सुनते नहीं बुजुर्ग सुनने को तैयार नहीं है| और प्रिया कह रही है कि उनके जरूर एक बेटी होनी चाहिए थी |ताकि वह मेरी जैसी बेटी की तकलीफ समझ पाती बुजुर्गों का अपनी फैमिली से दूर होने का एक रीजन यह भी है कि वे खुद को बदलना नहीं चाहते| आज की पीढ़ी के साथ बदलेंगे तो शायद दोनों की जिंदगी में खुशियां छा जाएं|
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