आज के परिवेश में भारतीय त्योहारों पर बाजारवाद बहुत ज्यादा हावी हो रहा है |आज से कुछ साल पहले तक भी त्यौहार उनकी मूल भावना के साथ मनाए जाते थे |लेकिन आजकल बाजारवाद पूर्ण रूप से छा गया है| दिवाली पर माटी के दिए जलाए जाते थे| जिससे कुम्हारों को भी काम मिलता था| इसकी जगह आजकल फैंसी लाइटों ने ले ली है जिससे बजट भी बिगड़ जाता है और जेब पर भी काफी प्रभाव पड़ता है| अपने घर पर ही हल्की मिठाईयां बना ली जाती थी| जो आस- पड़ोस के लोगों को खिलाई जाती थी |अब ज्यादा महंगे गिफ्ट देने के चक्कर में लोगों का आपसी प्यार भी बहुत कम हुआ है लोग एक दूसरे को जाकर शुभकामनाएं देने के बजाय फोन पर 4 लाइनें टाइप करके विश कर देते हैं| और अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं| इससे आपसी भाईचारा और प्यार कम होता है| दशहरे पर भी मूल भावना यह थी कि हम इस दिन बुराइयों का त्याग करें लेकिन वह भावना बदलकर अब लंबे-लंबे रावण जलाने में और पटाखे ज्यादा छुड़ाने पर प्रदूषण को बढ़ावा दे रही हैं| मूल भावना हम बुराइयों का त्याग करें और बुराइयों की अंत में हार निश्चित है यह भावना खत्म ही हो गई| गणपति और दुर्गा पूजा का भी महत्व था ताकि आपके गांव की मिट्टी से ही मूर्तियां बनाई जाती थी| जिससे गांव के लोगों को रोजगार मिलता था |और फिर वह जब विसर्जन की जाती थी तो उनसे कोई प्रदूषण भी नहीं होता था| आजकल तो केमिकल से मूर्तियां बनती हैं और वह फिर नदी को जाकर प्रदूषित करती है| कई बार तो देखा जाता है कि जिसकी हैसियत गिफ्ट देने की नहीं है वह सामने वाले को त्यौहार की शुभकामनाएं देने भी नहीं जाता| बाजारवाद हमारे त्यौहारों पर इस कदर हावी हो गया है कि त्योहारों की असली चमक फीकी पड़ गई है| अगर यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ी त्योहारों का असली मतलब भूल जाएगी|अन्य त्योहारों के साथ भी यही स्थिति है हम त्यौहार की मूल भावना को भूलकर बाजारवाद की चपेट में आ गए हैं बड़ी-बड़ी कंपनियां को अपने उत्पाद बेचने हैं और हम उनके द्वारा किए गए आकर्षक प्रचार के कारण उत्पादों की ओर खींचे चले आते हैं और चेहरों कोपरा पारंपरिक स्वरूप में ना मना कर बाजारवादी उपभोक्ता केंद्रित जाल में फंसकर गैर पारंपरिक स्वरूप में त्योहारों को मनाने लगे हैं अगर हम बाजार ना जा पाए तो कंपनियां हमें घर पर ही बाजार उपलब्ध करा रही है यह सुविधा भी हमारे त्योहारों पर बाजारवाद को हावी कर रही है| जो कि आने वाले समय के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं
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त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान है हमारे सभी त्योहार किसी ना किसी भावना से जुड़े हुए हैं| हमें उसी भावना से त्यौहार मनाने चाहिए ताकि बाजारवाद हमारी सांस्कृतिक सभ्यता पर हावी ना हो
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