संयुक्त परिवार है |राधा घर की बड़ी बहू है | वैसे तो सब ठीक है लेकिन ऐसा लगता है कि राधा को सब काम के लिए ही पसंद करते हैं |
देवर की शादी तय हो गई है |एक ननंद है जिसको बुलावा दे दिया गया है| राधा के मायके वालों को भी बुलाया गया है वहां से भाई आया है| राधा ने सब को उपहार देते समय भाई को भी उपहार दे दिए हैं, जो कि उसकी ननंद को बिल्कुल पसंद नहीं आया| ससुर जी तो समझदार है ,लेकिन सासु मां ने भी बेटी का साथ देते हुए उस बात पर पूरा क्लेश कर दिया| राधा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा लेकिन उसने सभी काम अच्छे से संपन्न कराया|
अब राधा का मन पहले की तरह उन लोगों से नहीं मिल पाता था| और काम में व्यस्त रहती थी दो छोटे-छोटे बच्चे थे उसी में उसका पूरा दिन निकल जाता था |
वक्त भी जैसे राधा की परीक्षा ले रहा था |पति का एक्सीडेंट हो गया, और उनकी हड्डी टूट गई जिसका ऑपरेशन कराना था|
अब राधा बिचारी अकेले अस्पतालों के चक्कर लगा रही थी | मां से बात की तो यह भी परेशान थी|
ननंद तो ससुराल में थी| सास ससुर बुजुर्ग है और देवर की अपनी फैमिली थी| आज ऑपरेशन था | मां ने शायद भाई को कह दिया होगा| राधा ऑपरेशन में जाने से पहले उदास हो रही थी| ,पति ऑपरेशन थिएटर में गए तो उसकी रुलाई फूट पड़ी तभी देखा सामने भाई खड़ा है | वह भागकर गले लग गई | अब उसे कुछ हिम्मत बंधी |ऐसे कितने मौके हैं जब जब उसे घरवालों की जरूरत होती थी तो सिर्फ भाई ही खड़ा हुआ मिलता था |
ना दिन देखता था ना रात जब भी उसे जरूरत होती तुरंत हाजिर हो जाता |
राधा बहुत परेशान भी होती कि इस तरीके से परेशान करना कहां तक उचित है|
पड़ोसी भी कहते कि ,"तुम्हारा भाई कितना अच्छा है बेचारा जब बुलाओ भागा चला आता है"
थोड़े दिन बाद राधा के पति का ट्रांसफर हो जाता है दूसरे शहर में तो उन्हें मकान शिफ्ट करना पड़ता है | राधा का भाई खुद ही बोलता है कि तुम्हारा सामान शिफ्ट कराने में मैं मदद कर दूंगा | तभी सासू मां से बातें करते हुए नंद की बात सुन लेती है जो कि कह रही थी "नए मकान में अपने भाई को बुला लिया और हमें तो पूछा भी नहीं |, "राधा को सुनकर बहुत बुरा लगा जबकि उसके मन में ऐसी कोई भावना नहीं थी| राधा सासु मां के पास गई और बोली कि " जब मेरा भाई दुख में बिना बुलाए आ सकता है तो सुख में आने के लिए क्या उसे किसी की इजाजत की जरूरत पड़ेगी |मुझे जब जब जरूरत थी वह मेरे साथ खड़ा था| और आज भी वह मेरी मदद के लिए ही बोल रहा है|, "
लेकिन आप लोगों का एक ही बात को लेकर नजरिया अलग-अलग है| अगर भाई दुख में काम आए तो उसका फर्ज है और सुख में आ जाए तो.........मैने बुला लिया|
और क्यों ना बुलाऊं......क्या वह सिर्फ दुख में काम आने के लिए ही है????जब दुख में काम आया तो सुख में भी तो उसका आना बनता है| मेरे उपहार देने पर भी आपने कितना क्लैश किया था, मैं तब भी कुछ नहीं बोली|
लेकिन ऐसे कब तक चलेगा क्यों मायके वालों को हमेशा नीचा देखना पड़ता है|
उन लोगों के प्रति नजरिए में कब बदलाव आएगा|
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