अरे ओ निम्मो!!!!! कहाँ चल दी इसे लेके?? तेरे बस की ना|अभी तेरे बापू को पाँच दिन हुए, अर तु काम पै चल दी| हाँ चचा भाई कू स्कूल छोड कै मै माल ढोने जाऊँगी| पर तु रिक्शा चला लेगी| हां क्यूँ नि जब पेट में भूक लगे, तो हिम्मत अपने आप आ जा| बापू तो दारू पीने के चक्कर मे अपनी जान छोड़ गया|अर जिब जीवे था तो भी परेशांन करे था| अरे मां तो बहुत मेहनती है उनने ही सिखाया हमें हर हालत में मेहनत करनी चाह | पर बाल मंजूरी करना अपराध हो और कोई काम ना देगा?? नहीं चाचा काम तो जरूर देना चाह, ,, अर हम कुछ गलत तो ना करें मजदूरी करके पेट भरे, , अर मोहल्ले में देखा जो छोटे छोटे बालक टीवी में काम करें| उनकी बाल मजदूरी ना होती? ? यह कहां तक सही है कि जिन्हें जरूर हो उन्हें काम ना दो| चलो चाचा मुझे काम पर जाना अर फिर स्कूल भी जाना,, अपने भाई कु रिक्शे मैं बिठाके चल दी| मुड़कर रिक्शे में उन बालको को देख री है जो सुबह सुबह स्कूल जा रे हैं| अर सोच री सबकी अपनी अपनी किस्मत. |
अपनी-अपनी किस्मत
एक बच्ची की आत्मविश्वास की भरी हुई कहानी जो कि विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानती
Originally published in hi
Varsha Sharma
13 Jun, 2020 | 1 min read
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