#लघुकथा
वर्षा शर्मा नईदिल्ली
यह रचना पूर्णतया मौलिक स्वरचित और अप्रकाशित है
,"कितना प्यारा लिखते हैं आप"
"जी कौन, "आपका लिखा हुआ पढ़ा बहुत अच्छा लिखते हैं आप इसी तरह आगे भी अपना लिखा हुआ शेयर करते रहिए, "
,"जी आभार, "कहते हुए प्रिया मन ही मन खुश हो रही है आज पहली बार उसके लिखने की तारीफ की मैसेंजर पर
," घर में कभी किसी से कोई तारीफ नहीं मिली ,"धीरे-धीरे उस अजनबी से बातों का सिलसिला बढ़ निकला |
हां दो बच्चों की मां भी है वह, पति भी घर पर पूरा ध्यान देते हैं| लेकिन थोड़े से ही समय में वह अजनबी अपना लगने लगा,
आत्मीयता से बातें करता | जैसे प्यार करने लगा हो !!!अपनी जवानी के समय में तो कभी प्यार मोहब्बत पर प्रिया ने ध्यान ही नहीं दिया पितृसत्तात्मक परिवार और भाइयों का एकछत्र राज था तो हमेशा दब कर रही| अब उसे अपने पति में बहुत सारी कमियां नजर आ रही थी |दोनों बेटों को सोते हुए छोड़कर उसके साथ जाने का प्रोग्राम था ,
उसका फोन आया ,"हमें कुछ पैसे भी चाहिए होंगे तो कल तक पैसों का तुम भी इंतजाम करो मैं भी करता हूं, "1 दिन और रुकना तो उसे काँटों पर चलने जैसा लग रहा था ,| वह तो जल्दी से जल्दी अपने प्रियतम से मिलना चाहती थी |अगले दिन उसकी खास सहेली का फोन आया उससे बाते करते हुए बोली कि मेरी एक सहेली के साथ ऐसा हुआ है और अगर वह इस हालत में अपने पति को छोड़ जाए तो क्या सही होगा??????फिर उसकी सहेली ने बताया ,"यह दूर के ढोल सुहावने होते हैं , हमारी जो खास दोस्त थी रिया उसके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था तो पैसे लेने के बाद उसे आज तक वापस नहीं मिला और उसके साथ गलत व्यवहार करके छोड़ दिया| उसके पति ने भी घर से निकाल दिया| प्रिया चुपचाप अपने पति के पास आकर सो गई है उसे तो जैसे काटो खून नहीं प्रिया भी तो यही करने जा रही थी | अब उसने उस व्यक्ति का फोन उठाना बंद कर दिया तो उसके फोन पर गलत गलत फोटो आ रही थी जो शायद एडिट करके भेजी थी | उसकी आंखों में आंसू आ गए पति ने पूछा क्या बात हुई???तो सब कुछ एक सांस में सच सच बता दिया हां थोड़ा धक्का लगा लेकिन गर्त में फिसलने से बच गई.....
वर्षा शर्मा
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
अप्रसारित
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