प्रेम सिर्फ समर्पण और विश्वास चाहता है जो कि आजकल के रिश्तो में कहीं देखने को नहीं मिलता हर आदमी खुद को बड़ा समझता है| हमने कभी भगवान को नहीं देखा लेकिन हम जब निश्चल प्यार करते हैं तो कई बार दुख में अपने साथ खड़ा हुआ साक्षात पाते हैं भगवान को|
हां!!!प्रेम तो है धरती पर क्योंकि प्रेम नहीं होता तो दुनिया इतनी प्यारी भी नहीं होती
प्रेमी प्रेमिका का रूप रूहानी नहीं है
यह तो सिर्फ एक शारीरिक आकर्षण है जो समय के बाद स्वत ही ध्वस्त हो जाता है और हम अपने आसपास के माहौल से देखकर यह समझ भी सकते हैं| रूहानी प्रेम में ताकत है जो आप का संपूर्ण विकास करती हैं |कृष्ण राधा, मीरा इन सब का रूहानी प्रेम अलौकिक था रुह से जुड़ा हुआ था तो आज भी हम रूह से महसूस करते हैं |एक मां अपने बच्चे की बिन कहे सब बातें समझ जाती है मां का प्रेम अलौकिक ताकत लिए हुए होता है| कई प्रेम ऐसे निस्वार्थ होते हैं जिनमें हमें लगता है कि सचमुच हम रूह से जुड़े हुए हैं| और उन रिश्तो में हमें बताने की जरूरत नहीं पड़ती कि यह हमारा रूहानी इश्क है सबसे ज्यादा प्यार तो हम अपनी मां से ही करते होंगे तो क्या हम मां से बोल सकते है ??कि हम रूहानी इश्क करते हैं तो प्यार तो सर्वथा है बस उस की परिभाषाएं अलग-अलग हैं यह नहीं कि मतलब आया तो हम तुम्हें जान से ज्यादा चाहते और मतलब नहीं है तो तुम ही हमारे सबसे बड़े दुश्मन है
वर्षा शर्मा
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