हम बचपन से ही गांव के माहौल में बड़े हुए | वहां रहते हुए सभी धर्म अपने से लगते थे| हमें ये पता था कि हम भगवान को मानते हैं ,हमारे पड़ोसी हैं अल्लाह को मानने वाले ,मेरे खुद की सहेलियां जो जैन धर्म की थी| मतलब हम सब लोग आपस में एक दूसरे के धर्म को बहुत सम्मान देते थे |ना कोई गुरू था ना कोई बाबा सभी बस भगवान के भजन कीर्तन करते थे| पूजा करते थे जब हमारे मंदिरों में कोई त्यौहार मनाया जाता था तो सब उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे| और जब जैनियों के व्रत होते थे तो हम उनके मंदिर में जाते हैं और उन कार्यक्रमों में पार्टिसिपेट करते थे |रमजान के दिनों में हमारे घर से दूध और छाछ उनके घर में रोजा खोलने के काम आता था| और वह हमें ईदी देने आते थे |हम उनको दिवाली देते थे हर त्योहार मिलजुलकर मनाया जाता था |आज भी बच्चों को लेकर गांव गई तो एक तरफ से मंदिर की घंटी बजती हुई और दूसरी तरफ से अजान की आवाज आती हुई बहुत मधुर लग रही थी| उसी पर मैंने दो लाइने लिख दी थी अपनी कविता में कि अजांन और मंदिर के घंटी साथ साथ ही बजती थी | बचपन से सभी धर्मों को बराबर का दर्जा मन में अंदर तक बैठ गया है |आज भी हमें जैन धर्म के णमोकार मंत्र बहुत अच्छे से याद है|
णमो अरिहंतानम
णमो सिद्धानम
णमो आरियांन्नम् नम
णमो उवज्झायाणम्
नमो लोए सवे साहूनम
ऐसो पंच णमोकारो
सव्य पाप नासनों
मंगलनम च सनवेसी
श्री मंगलम हवई मंगलम यह जैन धर्म के प्रार्थना है जो हमें आज तक कंठस्थ है
और एक विश्वास के साथ श्रद्धा से सर झूक जाता है आखिर भगवान तो यहां भी हैं चाहे वे किसी भी रूप में हो | यह तो हम इंसानों ने झगड़ने की वजह बना दी है नहीं तो धर्म हमें एक साथ मिलकर रहने की शिक्षा देता है|
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