"अब फिर फोन हाथ में! थोड़ा घर पर भी ध्यान दो मैडम, क्या सारा दिन सोशल मीडिया पर लगे रहती हो?"
आज थोड़ा गुस्से में था समीर| प्रिया उठ गई और फटाफट घर समेटा और चाय बनाकर लाई| तो दोनों को साथ बैठने का मौका मिला| समीर बहुत ही सुलझा हुआ इंसान है लेकिन आज क्यों गुस्सा है?
तब प्रिया ने प्यार से पूछा कि "आज क्या हुआ? आप ही का दिया फोन है साहब, आपने ही यह सब कुछ चलाना सिखाया है| आप कहें तो छोड़ दें?"
"नहीं प्रिया ऐसी बात नहीं है"
"तो अब आप ऐसे क्यों बोल रहे हो?"
समीर प्रिया की तरफ देखता रहा और बोला "कुछ नहीं, आज जरा ऑफिस में लोग तुम्हारे आर्टिकल पढ़ रहे थे| क्या बस तुम ही हो जो नारी जाति पर लिखती रहती हो? मेरा एक कलीग तो बोल रहा था कि क्या यह सब कुछ भाभी के साथ होता है? जो वह ऐसा लिखती हैं और नम्रता भी वैसा ही बोल रही थी| बस थोड़ा मेरे दिमाग में ऐसा आया तो मैंने तुमको बोल दिया| लेकिन मुझे लिखने से कोई प्रॉब्लम नहीं है| तुम्हें तो पता ही है| नम्रता एक जॉब करने वाली होकर भी इस तरीके की बातें कर रही है बड़ा अफसोस होता है सुनकर|"
"हां हां मैं आपको जानती हूं, आप इतने खुले विचारों के हैं मैं सब बातें आपसे कर सकती हूँ| मुझे तो उन लोगों की सोच पर तरस आ रहा है| या तो अपने घर में उस चीज को स्वीकार नहीं कर पा रहा है या वह आपको भड़काना चाह रहे हैं|"
"अब बताओ मैं भी उनसे क्या कहता कि नहीं ऐसी हिंसा नहीं हो रही है| मैं क्या कहता था?"
"आप तो चुप थे पतिदेव" प्रिया ने गले लग कर बोला, "लेकिन उनको भी तो समझना होगा ना कि हरिवंश राय बच्चन कभी मय खाना तो नहीं गए थे| लेकिन उन्होंने कितनी सुपरहिट मधुशाला लिखी! सुमित्रानंदन पंत जी ने वीरों पर कविता लिखी है वह कभी आर्मी में नहीं थे| समाज में प्रेरणादायक और उपयोगी दिशा देने वाली बातें लिखना हमारा फर्ज है, ताकि हर कोई उससे प्रेरणा ले सके| और जरूरी नहीं है बातें लिखने वाले के साथ घटित हुई| क्या पता उसके आसपास की किसी स्त्री ने सहा हो? उससे एक अच्छा बदलाव आ रहा है| तभी तो हम जैसी महिलाएं आगे बढ़ी हैं| और हम लोग चाहते हैं कि जिन महिलाओं को यह समय और यह वक्त नहीं मिल रहा है उसके लिए आवाज़ उठाएं और बात करें| शायद! यही चोट आपके ऑफिस के किसी मित्र को भी लगी होगी|"
"अरे वाह! मेरी लेखिका पत्नी इस तरीके से तो मैंने उसे समझाया नहीं और अगर समझाया होता तो शायद वह मेरी तरह बिल्कुल अच्छी तरीके से समझ गया होता| चलो तुम लिखो कुछ, इस पर मैं उसे टैग कर दूंगा|"
और दोनों मुस्कुराते हुए चाय का घूंट पीने लगे| प्रिया बोली "कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना" और मेरे प्यारे सैया ऐसे लोगों की बातों से दूर रहना|
दोस्तों, इस कहानी का तो हैप्पी एंडिंग हो गया, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं होता| कहीं-कहीं बातों के बहकावे में आकर दूसरों के रिश्ते में खटास आ जाती है, इसलिए जब भी आप किसी से कुछ बोलें तो तोल मोल के बोलें| आजकल सोशल मीडिया पर प्रिया की तरह कोई लिख रही/रहा है तो उनको बढ़ावा दें ना कि अपनी पुरानी सोच से उनके निजी जीवन पर तंज कस के उनको परेशानी में डालें| सब इसलिए लिख रहे हैं ताकि उस चीज से कुछ सीख सकें, अनुभव ले सकें और प्रेरणा पा सकें|
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धन्
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