दिसंबर की सर्द रात्रि है, ऑफिस से निकलते हुए देखा बिल्कुल अंधेरा गहरा गया है और धुंध भी बहुत पड़ रही है हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा.... ... घर में रहने वालों के मजे हैं| पता नहीं मुझे ही कमाने के लिए तो बाहर निकलना है, तभी वह देखता है कि चौकीदार ठंड में पहरा दे रहा है अब उसकी विचारधारा बदल गई कि मैं ड्यूटी से परेसान हूँ इन बेचारों को रात भर जागकर पहरा देना पड़ता है,,
दो कप कॉफी खरीद कर चौकीदार को भी देता है और खुद भी पीता है|
अब इतनी ठंड में भी उसे गर्माहट का अहसास हो रहा है, ,,
सही है हमें अपना दुख ज्यादा लगता है लेकिन जब हम सामने वाले को ज्यादा मुसीबत में देखते हैं तो हमें अपना दुख कम न लगने लगता है
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