सर्वप्रिय हो तुम मुझे, बेधड़क कहता है ये मेरा मन
बिन तुम्हारे ऐसी हूं मैं जैसे दिल बिन धड़कन
एक कशिश है तुझमे जो तेरी ओर खिंची चली आती हूं
किसी और से नहीं,बस तुझसे ही अपनापन पाती हूं
ऐ हिंदी,बिन तेरे भाव दिल के ना प्रकट कर पाऊंगी
तू ही बता फिर मैं कैसे जी पाऊंगी
औरों के साथ तेरा नाता सिर्फ भाषा का है
पर मेरे लिये तो तू दीप आशा का है
टूटता है जब हौंसला मेरा
तू ही तो ढाढस बंधाती है
दुखाता है जब कोई दिल मेरा
तू ही तो मरहम लगाती है
कभी गद्य, कभी पद्य में पिरोकर शब्दों को
मुझसे कहानी तो कभी कविता लिखवाती है
तू ही तो है जो कभी मुझे पुरस्कार तो कभी सम्मान दिलवाती है
रहू़गी शुक्रगुजार तेरी मै मरते दम तक
ना छोड़ूंगी दामन तेरा मैं मरते दम तक
विश्व पटल पर छा जाये तू,यही चाहता है मेरा मन
तेरी बेहतरी के लिये कर दूंगी अपना तन,मन ,धन सब अर्पण
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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