विनती
मैं हूं एक छोटा सा बालक नादान
पढ़ने में नहीं लगता मेरा ध्यान
खेलकूद और कार्टून हैं मेरी जान
खाने में भाते हैं मुझको बस पकवान
मेरी एक विनती सुन लो तुम भगवान
सिखला दो मुझको भी "कैसे हों अंतर्ध्यान
करके शैतानी हो जाऊंगा मैं भी फिर अंतर्ध्यान
ना डांट पायेगा फिर,ना उमेठ सकेगा कोई मेरे कान
एक जादू की छड़ी भी देना, कर दे जो पूरे मेरे सारे अरमान
दूंगा अपने हिस्से से मैं तुमको फिर रोज़ दूध और पकवान
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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