आते ही रक्षाबंधन याद बचपन की है आई
रहते थे जब साथ मिलकर हम सब बहन- भाई
ना कटता था कोई भी दिन बिन लड़े भिड़े अपना
पर हो जाते थे एक पल भर में भूलकर लड़ना
बाहर वाला कुछ कह दे तो तय था उसका नपना
अब लड़ना तो दूर, डर यही ना रूठे कोई अपना
इस पावन पर्व पर राखी बड़े चाव से बहन है लायी
खिल उठेगा मन जब सजेगी इससे भाई की कलाई
करी है इन्हीं धागों से मज़बूत रिश्तो की सिलाई
मनाती यही प्रभु से रहे दूर हर मुसीबत से उसका भाई
भाई बहन के प्यार का प्रतीक है यह त्यौहार
नहीं चाहिए किसी बहन को बदले में राखी के कोई उपहार
बस दो शब्द बोल दे भाई प्यार से रख ले उसका मान
नहीं फूली समाती वो बढ़ जाती है उसकी शान
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
#1000कविता
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