फाल्गुन में जब मदमस्त पवन में सरसों लहलाती है
टेसू के फूल, बौरों की खुशबू मन मेरा हर्षाती है
रंगीन फिज़ा, रंगीन नज़ारे देख याद पिया की मुझे सताती है
सुन आहट दरवाज़े पर दिल की धड़कन बढ़ जाती है
हूं बेचैन इधर मैं,मन उनका भी शांत कहां होगा
मुझे रंगों से सराबोर करने को मन उनका भी तो उत्सुक होगा
बिन पी के सब सूना सूना, अंखियां भी मेरी रो लीं
आ भी जाओ मनमीत मेरे, खेलूंगी संग तेरे होली
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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