नाम रौशन करने की जिस बेटे से मां बाप ने उम्मीद लगाई थी
बहन ने बांधकर रक्षा सूत्र, जिस भाई से रक्षा की आस लगाई थी
वो लूटकर अस्मिता नारी की, बन गया हवस का पुजारी
अपेक्षाएं जो थी उससे ,रह गईं धरी सारी की सारी
नाम रौशन तो क्या करता, मुंह पर कालिख मल गया
बहन को भी अब उसको भाई कहना खल गया
शर्म से परिवार का, घर से निकलना दूभर हो गया
अपमान और ज़लालत से उनका उम्र भर का नाता हो गया
है एक ही हल इसका, तोड़कर नाता उससे अब आगे बढ़ना होगा
पीड़िता को मिले न्याय इस दिशा में अग्रसर होना होगा
फिर समाज क्या रिश्तेदार भी लेंगे उन्हें हाथों हाथ
ना सहनी पड़ेगी ज़लालत, मिलेगा हर मुसीबत में सबका साथ
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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