दुःखी इंसां के होठों पर कब सजती है मुस्कान?
जो हो खुश, फिर कहां छुपती है उसकी मुस्कान
सजती है होठों पर लोगों के भांति-भांति की मुस्कान
खिलती है धूर्त लोगों के चेहरे पर कुटिल मुस्कान
बच्चों के चेहरे पर रहती है सदा निश्छल मुस्कान
जो मुस्कुराए मजबूरी में वो होती है फीकी मुस्कान
ले लेती है चैन किसी का होती है वो ज़ालिम मुस्कान
शैतानी छलकाती है किसी की मंद मंद मुस्कान
हैं कारण बहुत से जो छीन लेते हैं लोगों की मुस्कान
कहीं बेरोज़गारी, नौजवानों से छीन लेती है उनकी मुस्कान
कहीं दहेज, लील देता है लड़कियों की मुस्कान
कभी बेइज़्ज़त होने पर खो देती है नारी, अपनी मुस्कान
कहीं रंजिश, छीन लेती है होठों से मुस्कान
हैं लाचार जो ,उनको कहां भाती है मुस्कान
बेमौत मारे जाते हैं जिनके बच्चे, रूठ जाती है उनसे मुस्कान
भरी जवानी में जो हो जाये विधवा, फिर संग कहां उसके मुस्कान
हैं वृद्धाश्रम में जो, उनके होठों पर कैसे आये मुस्कान
हो गये बचपन में जो अनाथ, दूर ही रहती है उनसे मुस्कान
हैं दुनिया में ग़म बहुत, ना छीनो किसी से उसकी मुस्कान
करें भरसक प्रयत्न हम ऐसा, ला सकें होठों पर लोगों के मुस्कान
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
#1000कविता
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