सदियों से ये धरती हमें पालती आई है
गोद में अपनी ये दुलारती भी आई है
पर हमने दिये इतने ज़ख्म वो कराह रही है
मरहम लगाने को वो पुकार रही है
चुका नहीं सकते कर्ज़ धरती का पर फर्ज़ अपना निभाना है
हर कीमत पर इसे प्रदूषण मुक्त कराना है
संरक्षण रूपी यज्ञ में हरेक को आहुति देनी है
संसाधनों के किफायती प्रयोग की शपथ सबको लेनी है
लोभवृत्ति और शक्तिशाली होने की होड़ से हमको बचना है
पॉलिथीन से करके तौबा, रीसाइक्लिंग की दिशा में बढ़ना है
बिछानी है चादर हरियाली की, ऑर्गेनिक फूड का सेवन करना और कराना है
हमें हर हाल में धरती को स्वच्छ और सुंदर बनाना है
जिस दिन धरती मां पहले सी मुस्कुरायेगी
मानव जाति भी कर्ज़ थोड़ा सा उतार पायेगी
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏
Thanks a lot Charu💐💐
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