बिटिया रानी बनती है जब किसी की बहूरानी
छोड़ देती है शैतानी,करती नहीं फिर मनमानी
कभी लेकर नहीं पिया जिसने एक गिलास पानी
करती है सेवा ससुरालियों की, चाहे सास हो या नन्दरानी
मनपंसद खाना ना मिलने पर मचा देती थी जो शोर
खा लेती है अब वो सबकुछ जिन्हें खाने में करती थी कभी आनाकानी
ज़रा सी चोट लगने पर ले आती थी जो आंखों में आंसू
सह लेती है प्रसव पीड़ा भी,कहती नहीं किसी से अपनी परेशानी
सोती थी जो कभी घोड़े बेचकर देर तक
रहती है चौकन्नी,देती है बच्चे की खातिर नींद की भी कुर्बानी
पाकर प्यार पिया का भूल जाती है वो ताने,उलाहने सारे
इठलाती,मुस्काती है वो तो बनकर उसके दिल की रानी
बहूरानी बनते ही जुड़ते हैं उससे रिश्ते कई सारे
रिश्तों के नाम पर लुटा देती है वो सारी ज़िन्दगानी
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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