बहुत दिनों बाद अपने चाचा को घर आया देखकर शुभिका की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उन्हें पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए वो बोली एक ही शहर में रहते हुए भी इतने महीने में आ रहे हैं आप और आज भी चाचीजी को अपने साथ नहीं लाये। यह सुनकर उसके चाचाजी बोले मैं तो तेरी चाची से कह-कहकर थक गया पर वह यहां आने को तैयार ही नहीं हुई। अब वह बिल्कुल बदल गई है। मैं तो बहुत परेशान आ गया हूं।कितने डाॅक्टर्स को भी दिखा चुका हूं।
शुभिका बोली ऐसा क्या हुआ है चाचीजी को?
डाक्टर कहते हैं उसे डिप्रैशन नामक बीमारी हो गई है।यही कारण है कि वो अब कहीं जाना तो दूर किसी से बात भी करना पसंद नहीं करती बस अपने में खोयी रहती है।पहले तो बहुत हंसमुख मिज़ाज थी पर अब चिड़चिड़ी हो गयी है।हरदम उदास रहती है। कोई उत्साह ही नहीं रह गया है।काम भी बेमन से करती है।अब घर में जगह जगह जाले,बेधुले कपड़ों का ढेर,फ्रिज में बासी सामान,रसोई फैली हुई दिखाई देगी। रसोई में सब्ज़ी बनायेगी तो कभी मसाला जला देगी तो कभी ढंग से भूनेगी ही नहीं।बस घर कैसे चल रहा है मैं ही जानता हूं।
शुभिका सोचने लगी कि चाचीजी ऐसी तो ना थीं।वो तो अपने घर को बहुत व्यवस्थित रखती थीं।उनकी एक खूबी ये भी रही कि उन्होंने बहुत कम खर्चे में घर को सुचारू रूप से चलाया।कभी अपना खाली समय गप्पे हांकने में नहीं बिताया बल्कि उसका सदुपयोग अपने बच्चों को पढ़ाने एवं दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने में किया।अपने दोनों बच्चों को काबिल बनाने में उनका पूरा योगदान है और आज वो अमेरिका में वैल सैटेल्ड हैं।शुभिका सोचने लगी चाचीजी ने अपना सारा जीवन घर को संवारने में लगा दिया,कभी किसी अभाव या परेशानी की शिकायत ना करी पर चाचाजी थोड़े दिन में ही परेशान हो गये।
चाचाजी के खांसने से शुभिका का ध्यान भंग हुआ और वो बोली चाचाजी आप ही हाथ बंटा दिया करो ना।
उसकी बात सुनकर वो बोले बेटा बाकी दिन तो समय ही नहीं मिलता पर छुट्टी वाले दिन मैं ही घर को सुव्यवस्थित करता हूं।तू तो मेरी आर्थिक स्थिति को जानती ही है।अब डाॅक्टर की फीस व दवाईयों का खर्चा भी बढ़ गया है तो ओवरटाइम भी करता हूं।वो तो भला हो हमारी किरायेदारनी का जो दिन भर तेरी चाची का ख्याल रखती है वरना नौकरी करनी भी मुश्किल हो जाती।
आपको इस उम्र में इतना काम करने की क्या ज़रूरत है आप अपने दोनों बेटों से मदद क्यों नहीं मांगते?
तेरी चाची इसके लिये तैयार नहीं।वो तो मदद मांगने के नाम से ही बिफर जाती है।
ऐसा क्यों?क्या बच्चों ने उन्हें ऐसा कुछ कह दिया है जिससे उनके स्वाभिमान को ठेस लग गई।
ऐसी किसी बात का उसने मुझसे कभी कोई ज़िक्र नहीं किया।पर पता नहीं अनजाने में किस आघात का वो शिकार हुई कि डिप्रैशन ने उसे घेर लिया।
बात करते करते उनकी नज़र घड़ी पर पड़ी तो वो बोले अरे तीन बज गये पता ही नहीं चला। बस अब मैं चलूंगा।तेरी चाची ने पांच बजे तक आने के लिये कहा था।आधा घंटा तो पहुंचने में भी लगेगा।
शुभिका हंसकर बोली, चाचाजी इतने आज्ञाकारी तो बच्चे भी नहीं होते, थोड़ा और रूककर जाना अभी तो बहुत टाइम पड़ा है।
चाचाजी कुछ दार्शनिक अंदाज़ में बोले "बेटा, मैं तेरी चाची को ज़्यादा सुख सुविधा तो नहीं दे सका,ना उसे हीरे-जवाहरात दिला सका ,पर ये कोशिश हमेशा की है कि उसे मेरी वजह से कोई दु:ख ना पहुंचे।आज भी अगर समय पर नहीं पहुंचा तो उसे शायद दु:ख हो तो बस मैं समय से पहले ही पहुंचकर उसे खुश करना चाहता हूं।उसका उदास रहना एवं हर वक्त चिंतामग्न रहना मेरे दिल को आघात पहुंचाता है। मेरी पूरी कोशिश रहती है कि वो किसी भी तरह डिप्रेशन से बाहर निकले और पहले की तरह सामान्य जीवन व्यतीत करे।"
शुभिका अपने चाचाजी की बात सुनकर अवाक रह गयी। थोड़ी देर पहले वो अपने चाचाजी के बारे में जो धारणा बना रही थी वो निर्मूल साबित हुई। चाचाजी,चाची से परेशान नहीं हुए हैं बल्कि उनके बदले व्यवहार को किस तरह सामान्य बनायें,इस बात को लेकर परेशान हैं।।वो तो आज भी उनकी खुशी का ही ख्याल रखते हैं।अब शुभिका ने उन्हें रोकने की चेष्टा नहीं करी और चाचीजी के जल्दी ही ठीक होने की कामना करते हुए उनसे विदा ली।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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