मीरा एवं संदीप के दोनों बच्चे गुड़गांव में जॉब कर रहे थे। उनके बेटे निर्मित को नौकरी करते हुए चार पांच साल हो गए थे जबकि उनकी बेटी मनस्वी की इसी साल जॉब लगी थी। आज मीरा बहुत प्रफुल्लित थी क्योंकि आज उसे दिल्ली में अपने बेटे के लिए लड़की को देखने जाना है। मॉल में मिलना तय हुआ है|
नाश्ता करके वह संदीप के साथ मेरठ से दिल्ली के लिए निकल गई। जब वो लोग दिल्ली में निश्चित मॉल पर पहुंचे तो निर्मित वहां पहले से ही मौजूद था और थोड़ी देर में ही लड़की के पेरेंट्स भी लड़की के साथ आ गए थे। कॉफी के साथ बातों का सिलसिला शुरू हुआ इधर उधर की बातें करने के बाद लड़की की मम्मी ने निर्मित की मम्मी से पूछा कि गुड़गांव में दोनों भाई-बहन साथ ही रहते हैं क्या?
मीरा जी बोली नहीं, दोनों के ऑफिस बहुत दूर दूर हैं इसलिए दोनों ने अलग अलग ही पीजी लिया हुआ है| मीरा का उत्तर सुनकर लड़की की मम्मी आश्वस्त नज़र आईं और बोलीं अलग रहना ही ठीक भी है नहीं तो निर्मित की शादी के बाद दिक्कत हो जाती। इसके बाद उन्होंने दूसरा प्रश्न उछाला और मीरा जी से बोलीं रिटायरमेंट के बाद आप का क्या प्लान है? क्या आप अपने बेटे के साथ रहेंगी या मेरठ में ही रहेंगी।
उनकी बात सुनकर मीरा जी हतप्रभ थीं और उनसे बोली अभी तक तो हमने कुछ डिसाइड नहीं किया है लेकिन यह हमारी मर्ज़ी है हम कहीं भी रहे इसमें किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता है, लड़की की मां उनका उत्तर सुनकर चुप हो गईं। थोड़ी देर शांत रहने के बाद वह बोलीं कि निर्मित और हमारी बेटी अनन्या आपस में बात कर लें तो अच्छा है आखिर फैसला तो इन्हें ही करना है। बिल्कुल सही बात कह रही हैं आप मीरा जी बोलीं। उन्होंने निर्मित को अनन्या को बाहर ले जाने का इशारा किया।थोड़ी दूर तक दोनों चुपचाप चलते रहे फिर अनन्या, निर्मित से बोली आप अपने बारे में कुछ तो बताइए निर्मित ने उसे अपने ऑफिस और हॉबी के बारे में बताया और साथ ही यह भी बताया कि वह अपने घर से बहुत अटैच्ड है और हर वीकेंड पर वह अपने घर जाता है और तीज-त्यौहार तो सब मिलकर ही मनाते हैं।
अब निर्मित ने उससे अपने बारे में भी बताने को कहा और अपने बारे में भी राय पूछी। अनन्या ने भी अपनी हाॅबी और जॉब के बारे में बताया और निर्मित से बोली मुझे आपमें कोई बुराई दिखाई नहीं देती मेरी तरफ से हां है पर मेरी कुछ शर्तों पर आपको गौर फरमाना पड़ेगा तभी बात बन पायेगी अन्यथा नहीं। अनन्या बोली मुझे आपके घर जाने पर कोई एतराज नहीं है लेकिन आप जितनी बार अपने घर जाओगे उतनी बार मेरे घर भी चलना पड़ेगा और जितना खर्च अपने घर वालों पर करते हो उतना ही खर्चा मेरे घर वालों पर भी करना पड़ेगा। इसके साथ ही आप जैसे अपने घर वालों का ख्याल रखते हो वैसे ही मेरे घर वालों का ख्याल रखना पड़ेगा उनको पूरा सम्मान देना पड़ेगा।
अनन्या की बात सुनकर निर्मित बोला जहां तक आपके घरवालों के सम्मान की बात है वह तो मैं करूंगा ही पर मैं इस बात की हामी नहीं भर सकता कि जितनी बार मैं अपने घर आऊंगा उतनी बार मैं तुम्हारे घर भी जाऊंगा। हां, जब भी मेरी वहां ज़रूरत होगी तब मैं तुम्हें वहीं पाऊंगा। जहां तक खर्चे की बात है तो मुझे अभी तक एक पैसा भी अपने पेरेंट्स पर खर्च नहीं करना पड़ा बल्कि वो ही मेरे ऊपर आज तक खुलकर खर्चा करते आये हैं,पर अगर तुम्हारे घर पर कोई मुसीबत पड़ेगी तो मैं तन,मन,धन से तैयार रहूंगा।
अनन्या बोली एक बात और मुझे अपने मामलों में किसी की रोकटोक और दखलअंदाजी पसंद नहीं है ,मै अपनी मर्ज़ी की मालिक हूं मैं किसी बात में समझौता नहीं कर सकती। अतः कोई भी मुझसे किसी तरह की उम्मीद ना रखे।उसकी बात सुनकर निर्मित बोला अच्छा हुआ आपने अपने विचारों से अवगत करा दिया पर अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आपका और मेरा तालमेल नहीं बैठ सकेगा। ऐसा कहकर निर्मित माॅल की तरफ चल दिया और अनन्या भी उसके पीछे-पीछे चुपचाप चल दी। दोनों को अलग-अलग आते देखकर उनके पेरेंट्स समझ गये कि बात नहीं बनी। फिर उन्होंने एक दूसरे से हाथ जोड़कर अलविदा कहा और अपने अपने घर की ओर चल दिये। रास्ते में निर्मित ने अपने पेरेंट्स को सारी बातें बतायीं जिसे सुनकर उसके पेरेंट्स दंग थे।
मीरा जी बोलीं ज़माना बहुत तेज़ी से बदल रहा है।अब सभी स्वच्छंद होकर जीना पसंद करते हैं।मैं अभी तक यह तो सुनती आ रही थी कि अब लड़कियां ससुराल में नहीं रहना चाहती हैं ,उन्हें सास ससुर भी भारी लगने लगे हैं| लड़की के पेरेंट्स भी ऐसे ही लड़के की तलाश में रहते हैं जो घर से बाहर पोस्टेड हो ताकि उनकी लड़की को ससुराल में रहने का कम से कम मौका मिले। पर शादी का मतलब केवल दो लोगों का ही मिलन नहीं होता है बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है| कितने नए रिश्ते जुड़ते हैं और हर रिश्ते की अपनी अहमियत होती है पर यहां तो एक कदम और आगे की बात हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे शादी की बात नहीं किसी कॉन्ट्रैक्ट की बात चल रही हो।
मीरा जी को गुस्से में देख कर संदीप जी उन्हें समझाते हुए बोले पहले लड़कियों से शादी विवाह के मामले में उनकी मर्ज़ी के बारे में पूछा तक नहीं जाता था जहां पेरेंट्स ने शादी तय कर दी वहीं शादी करनी होती थी पर अब लड़कियां हर मुद्दे पर खुलकर बोलने लगी हैंऔर जब वह खुद आश्वस्त होती हैं तभी रिश्ते के लिए हामी भरती हैं।
मीरा जी बोलीं कि लड़कियों की स्वतंत्रता की पक्षधर मैं भी हूं,पर इस तरह की सोच से मैं दंग हूं।शादी आपसी समझ,प्यार और विश्वास से चलती है शर्तों से नहीं।संदीप बोले दुनिया में हर तरह के लोग हैं, निश्चित ही सारी लड़कियों की सोच एक सी नहीं होगी। अब तुम सोच सोच कर अपना मूड ऑफ मत करो। निर्मित जो अब तक चुपचाप सारी बातें सुन रहा था वो बोला मैं भी अपने साथ काम करने वाली कई लड़कियों के बारे में जानता हूं जो अपने परिवार के लिए पूरी तरह समर्पित हैं। मुझे भी ऐसी ही लड़की चाहिए जो हर तरह की परिस्थिति में मेरा साथ निभा सके नाकि अपनी मनमानी को ही प्राथमिकता दे और साथ ही साथ परिवार को भी मान दे। लड़कियों की आधुनिक सोच को मैं भी पसंद करता हूं पर विकृत सोच को नहीं।
निर्मित की बात सुनकर मीरा जी के दिल को बहुत सुकून मिला और फिर वह शांत मन से सफर का आनंद लेने लगीं। मीरा जी का मूड ठीक होने पर निर्मित और संदीप भी खुश थे।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
amazing story ❤😍
Thanks a lot Yashika ji
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