पहले ज़माने और इस ज़माने के पापा में अंतर देता है दिखाई
अब बाऊजी ,पिताजी ,पापा के बदले डैड ही देता है सुनाई
पहले पिता के दफ्तर से घर आने पर सन्नाटा छा जाता था
पढ़ने वाला बच्चा अपनी किताब कॉपी लेकर बैठ जाता था
पिता की आवाज़ से ही बच्चों में खौफ समा जाता था
सवाल पर उनके, ज़ुबान पर तो मानो ताला ही लग जाता था
यूं तो करते थे पहले भी पिता बच्चों को प्यार
पर दिखलाते थे वो बस अपना कड़क व्यवहार
तब बच्चे मां से ही सारी गुफ्तगू किया करते थे
जबकि शौक सारे पिता ही पूरे किया करते थे
धीरे-धीरे ज़माने ने ली अंगड़ाई
अब पापा भी बदले रंग में देते हैं दिखाई
अब बाप कभी मां,कभी दोस्त की भूमिका भी निभाते हैं
कभी नैपी बदलते हैं,कभी गाकर लोरी उसे सुलाते हैं
खेलते हैं संग बच्चों के,कभी प्रोजैक्ट उनका बनाते हैं
लाड़-प्यार में सहते हैं मार भी,चार बातें भी उनकी सुन जाते हैं
अब डरते नहीं बच्चे, हर बात पिता को ही पहले बताते हैं
मनवानी हो मां से कोई बात तो सिफारिश उन्हीं की लगाते हैं
दु:ख में बच्चों के फूट पड़ती है अब पिता की भी रूलाई
प्यार बाप का, अब बच्चों को देता है दिखाई
हो ज़माना कोई सा,पिता सोचता नहीं कभी अपने बारे में
कैसे रहे परिवार खुश,सोचता है हरदम वो इस बारे में
पिता ही होते हैं परिवार में सुख-शांति का आधार
देते हैं वो सीख बड़ी,करते सबके सपनों को साकार
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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