अंशु के घर रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा हुआ था। सब उसकी बेटी की शादी में सम्मिलित होने आए थे। खूब हंसी मजाक और नाच गाना भी चल रहा था ।आज भात की रस्म भी होनी थी और इस अवसर पर अंशु को अपने भाई की कमी बहुत खल रही थी। वह सोचने लगी कि अगर उसके भाई का ढंग से इलाज हुआ होता तो आज वो भी उसके सिर पर हाथ रखकर खड़ा होता। वह सोचने लगी काश ऐसा होता कि वह अतीत में जाकर सब कुछ ठीक कर पाती। उसके माता-पिता जो अंधविश्वास की बेड़ियों से जकड़े थे उन्हें उससे आज़ाद करा पाती ताकि वह भाई की बीमारी को भूत प्रेत के साये का नाम नहीं दे पाते और उसका डॉक्टर से समुचित इलाज करवाते ।उसकी आंखों के आगे उसका भाई तड़पता रहा और वह कुछ ना कर सकी। कभी उसे कहीं का पढ़ा हुआ जल पिला दिया जाता ,कभी कहीं का धागा पहना दिया जाता ,कभी भबूत लगा दी जाती ,तो कभी उसे झड़वा दिया जाता ।जब तांत्रिक भूत उतारने के नाम पर उसपर कोड़े बरसाता तो वो जोर-जोर से रोता था पर तांत्रिक उसे ऊपरी साये के रोने की बात बताकर पैसे ठगता रहा और भाई की हालत बिगड़ती रही और अंततःवो काल के गाल में समा गया ।बेटे के गम में उसके मां-बाप भी ज़्यादा ना जी सके और हंसता खेलता परिवार तहस नहस हो गया ।
अभी वह यह सोच ही रही थी कि ,"मामा आ गए मामा आ गए" बच्चों द्वारा शोर मचाने पर उसका ध्यान भंग हुआ। उसने देखा उसकी तीनों बुआ के लड़के आए थे ।उन्हें देखकर खुशी के मारे उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उसके भाई की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता था पर वह अपने कजिन्स के आने पर दुगने उत्साह से भात की रस्म निभाने की तैयारी करने लगी।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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