भैया, पापा की तबियत के बारे में चाचाजी को भी बता दो वरना पिछली बार की तरह वो गुस्सा करते हुए कहेंगे कि "हमें तो कोई कुछ बताना ज़रूरी समझता ही नहीं है,बता देते तो आकर सब संभाल लेता , बच्चों को परेशानी नहीं उठानी पड़ती।" ऐसा शिवानी ने मोहित से कहा।
मोहित बोला मैं हॉस्पिटल जा रहा हूं वहां मम्मी से कह दूंगा वो ही कर लेंगीं चाचाजी को फोन। मुझे तो वो फिर डांटना शुरू कर देंगे।वो ये नहीं देखते कि पहले बीमार को देखना पड़ता है फोन तो बाद की बात होती है, ऐसा कहकर मोहित हॉस्पिटल चला गया। हॉस्पिटल पहुंचकर उसने अपनी मम्मी को चाचाजी से बात करने के लिये फोन मिलाकर दिया और फोन स्पीकर पर डाल दिया। उधर से उसके चाचाजी ने फोन उठाया तो मोहित की मम्मी सुनीता उनसे बोलीं "भैया आपके भाई को कल रात हार्टअटैक आया था हॉस्पिटल में भर्ती हैं अब हालत कुछ संभली तो फोन करने का होश आया।आपको हॉस्पिटल की लोकेशन अभी भेज दूंगी ताकि आपको आने में कोई दिक्कत ना हो। ऐसा सुनकर मोहित के चाचाजी बोले भाईसाहब परेशानी में हैं ये सुनकर अच्छा नहीं लगा पर अभी तो मैं आने की स्थिति में नहीं हू। अभी मुझे एक ज़रूरी मीटिंग के लिए कोलकाता जाना है। मैं भाई साहब से फोन पर बात कर लूंगा। वैसे भी अब तो बच्चे भी बड़े एवं समझदार हो गए हैं सब संभाल लेते हैं चिंता की कोई बात ही नहीं है ऐसा कहकर उन्होंने फोन रख दिया। मोहित अपनी मम्मी से बोला देख लिया आपने, अगर ना बताते तो सौ उलाहने देते और जब बता दिया तो अब आने से साफ कन्नी काट गए ।झूठे को यह भी नहीं पूछा कि किसी चीज की कोई ज़रूरत तो नहीं है, वैसे बड़ी बड़ी बातें बनाते हैं। सुनीता उससे बोली तू क्यों परेशान होता है। एक तरह से अच्छा भी है जो वो अभी नहीं आ रहे हैं वरना तेरे पापा उनकी पसंद की चीज़ें बनवाने में ही मुझे रसोई में लगा देते और ऐसे में तेरे पापा की देखभाल में ही कमी हो जाती। मोहित बोला कोई ज़रूरत नहीं है कुछ अलग बनाने की जो पापा के लिए बनेगा वही सब खायेंगे, ऐसा कहकर मोहित डॉक्टर साहब से बात करने चला गया। दो दिन बाद मोहित के पापा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।धीरे धीरे उनकी हालत में सुधार आ रहा था। घर आये हुए एक हफ्ते से भी ज़्यादा हो गया था । मोहित के पापा रोज़ अपने छोटे भाई के आने का इंतजार देखते पर आना तो दूर उनका एक फोन भी नहीं आया। वह मोहित से बोले लगता है तेरे चाचा का बहुत बिज़ी शेड्यूल चल रहा है वरना वह आता ज़रूर। मोहित सच बात बताने वाला था कि वो तो कश्मीर में अपनी फैमिली के साथ एंजॉय कर रहे हैं पर सुनीता ने उसे इशारे से मना कर दिया क्योंकि वह अपने पति को इस समय कोई दुःख नहीं पहुंचाना चाहती थी। सुनीता अपने पति को दवा देते हुए बोली आप अभी किसी के बारे में मत सोचो केवल अपना ख्याल रखो,जब भैया को फुरसत होगी तो वो आ ही जायेंगे।ऐसा कहकर उसने अपने पति को तो शान्त कर दिया था पर खुद उसका मन बहुत परेशान था।वो मन ही मन सोचने लगी कि अब प्यार मौहब्बत तो लोगों में खत्म ही हो गई है बस दिखावे का ही बोलबाला है।जिस भाई को उनके पति ने अपने बेटे की तरह पाला,उसकी ज़रुरतों को पूरा करने के लिये अपना तन पेट भी काटा वो भाई हार्ट अटैक की सूचना मिलने पर क्या अपना प्रोग्राम पोस्टपोन नहीं कर सकता था उसे मीटिंग का झूठा बहाना बनाना पड़ा।आने की तो बात दूर की है एक फोन भी नहीं करा गया।वो सोचने लगी कि देवर जी की असलियत अपने पति को उनके ठीक होने पर बतायेगी ज़रुर ताकि वो उनसे भविष्य में कोई अपेक्षा ना रखें।"अरे कहां खो गयीं"अपने पति की आवाज़ सुनकर सुनीता का ध्यान भंग हुआ। सुनीता हंसते हुए बोली आप खोने का मौका ही कहां देते हो ।अरे खो जाओगी तो चाय कौन पिलायेगा ।कितने दिन हो गये एकसाथ बैठकर चाय पिये हुए।अभी लायी दो मिनट में,ऐसा कहकर सुनीता चाय बनाने चली गयी और मोहित के पापा मोबाइल की गैलरी में अपने भाई के फोटो देखकर ही दिल बहलाने में लग गये। मोहित इस समय अपने को बहुत लाचार महसूस कर रहा था क्योंकि वो अपने पापा को वो खुशी नहीं दे पा रहा था जो इस समय चाचाजी के पास होने से वो महसूस करते।वो मन ही मन सोचने लगा कि वो हमेशा अपने पापा की उम्मीद पर खरा उतरने की कोशिश करेगा, उन्हें कभी निराश नहीं करेगा। चाचाजी की गिनती अपनों में करुं या परायों में,ऐसा सोचते हुए वो कमरे में से ताश लेने चला गया ताकि कुछ देर वो पापा के संग खेलकर उनका दिमाग दूसरी ओर लगा सके।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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