याद आता है मुझको अपना गुज़रा ज़माना
वो बारिश का मौसम और बचपन सुहाना
स्कूल में रेनी डे होने पर मेरा खुश हो जाना
रास्ते में फिर छप छप करते हुए आना
छींटे पड़ने पर लोगों का बड़बड़ाना
फिर साॅरी बोल मेरा जल्दी से भाग जाना
घर आकर बारिश के पानी से तरणताल बनाना
फिर तैरने की सारी शैलियां आज़माना
कभी कागज़ की नाव से रेस लगाना
कभी साइकिल से पानी को चीरते हुए जाना
कभी बारिश में ही झूला झूल जाना
कभी फिसलकर गिरना, फिर हंसते हुए उठ जाना
मिलजुलकर चाय पकौड़े खाना
भीगने पर ज़ुकाम और सिर दर्द का बहाना बनाना
फिर अगले दिन स्कूल से छुट्टी मनाना
सड़क पर बारिश में तालाब सा बन जाना
मेंढकों का उसमें छलांग लगाना और टर्र टर्राना
स्कूल टाइम पर बारिश का रुक जाना
बारिश का जैसे हमसे दुश्मनी निभाना
अब कहां वो दिन कहां वैसा ज़माना
अब तो आर्टिफिशियल रेन का है ज़माना
उसी में होता है डांस उसी में होता है नहाना
अपनी अपनी होती हैं यादें अपना अपना ज़माना
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
#1000कविता
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Hello Ma'am, please use tag in tag option Which is in general setting.
जिस तरह से आपने use किया है वह count नहीं हो पाएगा 😊
Thankuuuuuu so much Charu ji💐💐
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