अरे माँ जल्दी आओ दादू बुला रहे हैं, सोनू ने चिल्लाकर अपनी माँ को आवाज़ दी। क्या हुआ क्यों इतना चिल्ला रहे हो सोनू को डाँटते हुए इरा ने बाबूजी की तरफ देखा। बाबूजी बोले बहू, आज मुझे सपने में अपनी नानी दिखाई दीं और वो बोलीं कि हर बार श्राद्ध के दिनों में मैं तेरे द्वार पर आती हूँ और हर बार खाली हाथ ही लौट जाती हूँ। मैं उनसे कुछ कह पाता इतने में मेरी नींद ही खुल गई। मुझे नानी की बात सुनकर बहुत दुःख हुआ ।मेरी नानी तो मेरा बहुत ध्यान रखती थीं। मैं जब भी अपनी मम्मी के साथ ननिहाल जाता था तो वो तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खिलाया करती थीं। मेरी हर फरमाइश तुरंत पूरी कर देती थीं। मैंने सोचा है कि इस बार नानी का श्राद्ध अवश्य करूँगा ।ऐसा सुनकर बहू तुनककर बोली कि पहले ही आपके माता-पिता, ताऊजी और सासू माँ का श्राद्ध करना पड़ता है और नानी का श्राद्ध हमने कभी नहीं करा। अब नया काम नहीं शुरू करूँगी। ये सुनकर बाबू जी एकदम शान्त हो गये और बोले ठीक है तुम जाओ आराम करो। फिर बाबूजी बिस्तर से उठे, नहाये-धोये और घर से बाहर की ओर चले गये। थोड़ी देर में लौटकर आये तो उनके हाथ में हलवा, पूरी, मिठाई, फल,कपड़े आदि बहुत सामान था। अब उन्होंने ये सारा सामान थाल में रखकर मनस दिया और फिर जल भी दिया। बाबूजी की आँखों से आँसू बह रहे थे पता नहीं नानी की याद में या अपनी मजबूरी के................
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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