प्रकृति की पुकार

प्रकृति मानव द्वारा दिये गये ज़ख्मों से कराह रही है

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 03 Jun, 2021 | 0 mins read



प्रकृति के रूप में मिला है हमें अनमोल उपहार

पर ना रख पाये हम उसे मूलरूप में बरकरार

कराह रही प्रकृति,लगा रही मानव से ये गुहार

ना करो मुझे बंजर औ प्रदूषित,बंद करो अपने अत्याचार

करती है जब प्रकृति आपदाओं के रूप में गुस्से का इज़हार

मच जाता है चहुं ओर फिर हाहाकार

समझें हम प्रकृति के संदेश को,ना करें उसे नज़र‌अंदाज़

छुपा है इसी में सुरक्षित भविष्य और वर्तमान का राज़

सहेजें गर हम प्रकृति को और दें उसे संवार

ना झेलना पड़ेगा प्रकोप,पायेंगे गोदी में उसकी, हम मां सा प्यार


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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Vandana Bhatnagar

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