स्वप्निल विदेश में एक कंपनी में कार्यरत था। काम में कुछ गड़बड़ हो जाने पर उसके बाॅस ने उसे बहुत बुरा भला कहा और उसकी हिंदी भाषा का भी मखौल उड़ाया। अपनी भाषा का मज़ाक उड़ता देख वो तिलमिला गया और बाॅस से बोला व्यक्तिगत रूप से आप मुझे कुछ भी कह सकते हैं पर अपनी भाषा के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता हूं। हिंदी,हम भारतीयों का अभिमान है। मैंने कभी आपकी भाषा का भी अपमान नहीं किया है क्योंकि हमारी हिन्दी भाषा ने हमें अन्य भाषाओं को सम्मान करना भी सिखाया है,ऐसा सुनकर बाॅस की बोलती बंद हो गयी और उसको अपनी गलती का भी एहसास हो गया।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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