किसका पलड़ा भारी

शिक्षा का पलड़ा पैसे से हमेशा भारी होता है

Originally published in hi
Reactions 0
423
Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 12 Apr, 2022 | 1 min read




शौर्य और मयंक एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे पर दोनों की आर्थिक स्थिति में बहुत अंतर था। मयंक के पिताजी एक मज़दूर थे तो शौर्य के पिता की गिनती शहर के रसूखदार लोगों में होती थी। शौर्य, मयंक की गरीबी का बहुत मज़ाक उड़ाया करता था पर मयंक इस ओर ध्यान न देकर अपनी पढ़ाई में ही मशगूल रहता था। वो जानता था कि उसके पापा दिन रात मेहनत करके उसे अच्छे स्कूल में इसलिए पढ़ा रहे हैं ताकि उसका भविष्य उज्जवल हो,पर शौर्य का मन पढ़ने में कम ही लगता था। उसने लगभग सभी विषयों के, अपने स्कूल के टीचर्स से ट्यूशन लगा रखे थे और आये दिन वो टीचर्स को महंगे महंगे उपहार भी देता रहता था शायद इसी वजह से वह पास भी हो जाता था। दूसरी ओर मयंक हमेशा ही अपनी मेहनत के बल पर अच्छे नंबरों से पास होता था।


दसवीं में जब बोर्ड के पेपर हुए तो शौर्य के पैसों का दबदबा नहीं चला और वह फेल हो गया जबकि मयंक ने अपने ज़िले में टॉप किया था। अब मयंक ने आई.आई.टी. की तैयारी भी शुरू कर दी थी। बारहवीं के बाद उसका रुड़की आई.आई.टी. में सिलेक्शन हो गया था। बी.ई. करके उसका एक अच्छी कंपनी में अच्छे पैकेज पर सैलेक्शन भी हो गया था। अब उसने अपने पिता को मज़दूरी करने से मना कर दिया था।


नौकरी के लगभग दो साल बाद मयंक अपना मकान बनवा रहा था। जब मकान बनाने के लिए लेबर आयी तो उसमें एक चेहरा उसे जाना पहचाना लगा जब उसने उसे गौर से देखा तो वह शौर्य था। वह उसे मज़दूर के रूप में देख कर चौंक गया और उससे पूछ बैठा कि यह सब कैसे ? शौर्य सिर झुकाकर बोला मेरा पढ़ने में तो मन लगता ही नहीं था बस अपने पापा के पैसों पर बहुत गुरूर था, पर समय सदा एक सा नहीं रहता। हमारे बिज़नेस में बहुत घाटा हो गया था। सारी जमा पूंजी एवं प्रॉपर्टी भी बिक गई। हम ज़मीन पर आ गए। मेरे पापा ये सदमा बर्दाश्त न कर सके और परलोक सिधार गए। मेरी माँ का तो पहले ही स्वर्गवास हो चुका था।


मुझे तब अपनी वास्तविकता पता चली। पढ़ा लिखा तो था नहीं तो बस पेट पालने को मज़दूरी शुरू कर दी। अगर मैं पढ़ाई के वक्त पढ़ाई पर ध्यान देता और पैसों के गरूर में ना रहता तो आज मेरा यह हश्र नहीं होता। मयंक बोला शिक्षा का हुनर ऐसा है जो कोई हमसे छीन नहीं सकता और इसके बल पर हम कुछ भी कर सकते हैं। शिक्षा का पलड़ा पैसे से हमेशा ही भारी रहता है।दूसरे हमें कभी भी अपने गरुर में किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।वक्त कब पलट जाये कहा नहीं जा सकता। शौर्य ने उसकी बात से सहमति जताई और फिर अपने काम में लग गया। मयंक को आज अपनी शिक्षा पर बड़ा गर्व हो रहा था।


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

0 likes

Published By

Vandana Bhatnagar

vandanabhatnagar

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.