अनुभा अपने फोन में लगातार व्हाट्सएप पर मैसेज भेजे जा रही थी और थोड़ी थोड़ी देर में मुस्कुराती भी जा रही थी। काफी देर बाद मैसेज भेजने का सिलसिला बंद हुआ तो उसके पति आर्य नेउससे पूछा किससे बातें हो रही थीं? तुम्हें बहुत आनंद आ रहा था ,ऐसा तुम्हारे चेहरे के हाव भाव देखकर लग रहा था।
हां, वो पापा ने पूरे परिवार का एक ग्रुप बनाया है ना उसी पर सबकी बातें हो रही थीं।
मेरे व्हाट्सएप पर तो ऐसा कोई ग्रुप नहीं है
हां, पापा ने तीनो दामादों को इसमें शामिल नहीं किया है।
यानि पापा जी हम दामादों को अपने घर का सदस्य न समझकर पराया ही समझते हैं।
नहीं ऐसा नहीं है, पर घर की सारी बातें दामादों को बताई नहीं जातीं और ग्रुप में शामिल करने पर वो बातें कभी सामने आ भी सकती थीं, बस इसीलिए।
अच्छा तो ये बात है, पर फिर तुम क्यों बात का बतंगड़ बना देती हो जब तुमसे यहां की कोई बात छुपाई जाती है। तब तो तुम मुझे बहुत उलाहना देती हो कि बहू चाहे कितना भी कर ले पर फिर भी उससे घर की बातें छिपाकर उसे पराया ही समझा जाता है।
यह सुनकर अनुभा की बोलती बंद हो गई और वह बगले झांकने लगी।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.