निरुत्तर

अधिकार के साथ फर्ज़ निभाना भी ज़रुरी है

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 20 Apr, 2021 | 1 min read
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इतवार का दिन था, फिर भी प्रियांशी जल्दी ही उठकर रसोई में व्यस्त थी। उसके पति सागर जब देर से उठकर रसोई में आये तो बहुत सारे व्यंजनों को बना हुआ देखा।वो प्रियांशी से पूछ ही बैठे" अरे इतनी तैयारी किसलिए" तो प्रियांशी बोली आज मेरे पापा का श्राद्ध है।


 सागर बोले" तुम्हारे पापा का श्राद्ध तुम्हारे भाई करेंगे तुम क्यों"।


 प्रियांशी बोली क्यों जब उनकी सम्पत्ति में से मेरे ना चाहने पर भी आपने मुझे अपना हिस्सा लेने के लिए यह कहकर मजबूर किया था कि अपना हक़ छोड़ने की ज़रूरत नहीं है तो अब श्राद्ध करना मेरा फर्ज़ बनता है।


 प्रियांशी की बात सुनकर सागर निरूत्तर हो गये और प्रियांशी अपना काम निपटाने में लग ग‌ई।



मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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Vandana Bhatnagar

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Comments

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  • Deepali sanotia · 3 years ago last edited 3 years ago

    सही बात है ।

  • Vandana Bhatnagar · 3 years ago last edited 3 years ago

    Deepali ji aapka hardik aabhar 🙏

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