जब मैं तुमसे पहली बार मिला था तो मैं तो तुम्हें देखते ही अपने होशोहवास खो बैठा था।तुम्हारे लंबे,घने, काले लहराते बाल गजब ढा रहे थे और तुम्हारा बार बार अपनी ज़ुल्फों को झटकना,टेढ़ी नजरों से मुझे देखना मुझे घायल किये जा रहा था।जी तो कर रहा था कि बस समय रूक जाये और मैं तुम्हें बस निहारता ही रहूं पर कमबख्त ट्रेन का समय होता जा रहा था और मुझे ना चाहते हुए भी वेटिंग रूम से उठना पड़ा।
ट्रेन में बैठकर भी तुम्हारे ही ख्यालों में डूबा रहा।तब मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा भी आया कि ना तुमसे तुम्हारा नाम पूछा ना कोई कान्टैक्ट नंबर ही लिया।सोच रहा था कि पता नहीं जीवन में कभी दुबारा तुमसे मिलना भी होगा या नहीं।जब घर पहुंचा तो थोड़ी देर बाद ही मां चाय के साथ हाथ में एक फोटो भी लेकर आयी थीं। मेरे चाय पीते ही उस फोटो को मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा ज़रा बता तो सही कैसी लग रही है लड़की। मैं झुंझला तो वैसे ही रहा था और गुस्सा बस उनपर ही उतार दिया और फोटो देखे बिना ही अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैं मां से माफी मांगने उनके कमरे की तरफ बढ़ गया।उस लड़की की फोटो शायद हवा से उड़ गयी थी और फर्श पर उल्टी पड़ी थी, मैंने जैसे ही उसे उठाया तो भौंचक्का रह गया ।फोटो तुम्हारी ही थी। वीरेंद्र,मानसी से बोला
अच्छा, फिर क्या हुआ?
होना क्या था, मैंने मां को मनाया और तुमसे विवाह करने को हामी भर दी और तुम मेरी हो गयीं।
वीरेंद्र की बात सुनकर मानसी उदास हो गई और बोली "मुझसे शादी करके तुम्हें मिला ही क्या?दो एक साल ही हंसी-खुशी से बीते कि कैंसर ने हमारी खुशियों में सेंध लगा दी। मेरी वजह से तुम्हारी ज़िन्दगी भी अस्त व्यस्त हो गई है। तुम्हारा एक पैर अस्पताल में तो दूसरा मेरे पास रहता है । मेरी सेवा में तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी पर मैं तुम्हें कोई खुशी ना दे सकी। तुमने एक बेटी का अरमान अपने दिल में पाल रखा था ,उसे भी मैं पूरा ना कर सकी। तुम अपना दिल मेरी ज़ुल्फों पर हार गये थे पर अब तो ज़ुल्फों का नामोनिशान ही नहीं बचा कीमोथेरेपी से सारे बाल भी झड़ गये हैं।अब तो मुझे अपना चेहरा खुद ही देखना अच्छा नहीं लगता , तुम्हें तो क्या ही अच्छा लगेगा।
जब तक तुम्हें पाया नहीं था तब तक सिर्फ तुम्हारी बाहरी सुंदरता ही देख पाया था और उसी पर लट्टू हो गया था पर जब तुम्हारे अंर्तमन को जाना तो बाह्य सुंदरता गौण हो गयी। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे बाल हैं या नहीं,बस मैं तो हरदम तुम्हारा साथ चाहता हूं।इसलिये दिन रात भगवान से तुम्हारी बीमारी को दूर करने की प्रार्थना करता रहता हूं।देखना तुम , चमत्कार होकर ही रहेगा।
तुम मुझे यूं झूठा दिलासा मत दिया करो। मुझे मौत से कोई डर भी नहीं लगता। मैंने कुछ ही सालों में तुम्हारा इतना अधिक प्यार पा लिया है जितना लंबी उम्र जीने पर भी नसीब नहीं होता। तुम्हें पाकर मेरा जीवन सफल हो गया।अब कोई इच्छा शेष नहीं रही।
अरे कितनी बार कहा है कि नकारात्मक के बजाय सकारात्मक सोचा करो।अभी वो बात कर ही रहा था कि उसके पास किसी का फोन आ गया।फोन रखते ही वो बोला" मैं कोई तुम्हें झूठा दिलासा नहीं दे रहा हूं।अभी तुम्हारे डाॅक्टर साहब का ही फोन था कह रहे थे कि मानसी की रिपोर्ट बहुत बढ़िया आयी है अब चिंता की कोई बात नहीं है,खतरा टल गया है।
ऐसा सुनकर मानसी खुशी से पागल हो गई और बोली आखिर तुम्हारी प्रार्थना रंग ले ही आई।
रंग तो आना ही था, भगवान अपने भक्तों के वशीभूत ही होते हैं।और हां, तुम अपनी ज़ुल्फों के लिये परेशान मत होना ,ऐसा कहकर उसने उसके सिर पर विग पहना दिया और उससे बोला कहो तो कल ही बेटी को गोद लेकर बेटी का अरमान भी पूरा कर लूं।
आपने तो मेरे मन की बात कह दी।सच में अपनी गोद में बेटी को खिलाने के लिये मेरा मन भी बहुत उतावला है।मेरे से तो कल तक का इंतज़ार करना भी मुश्किल हो जायेगा।बेटी के लिये कमरा भी तो सजाना होगा,उसके लिये बाज़ार से बहुत सा सामान भी लाना होगा।अब मानसी बहुत खुश थी और उसमें जीने की ललक दिखाई देने लगी थी।
अरे अरे अभी तो बेटी आयी भी नहीं है और तुमने मुझे भुला ही दिया,ऐसा कहकर वीरेंद्र ने उसे अपने आगोश में भर लिया और उसकी जुल्फों से खेलने लगा। दोनों को ही ऐसा लग रहा था जैसे उनके पुराने दिन फिर से पहले से ज़्यादा खुशियां लेकर लौट आये हों। वीरेंद्र उसकी ज़ुल्फों की छांव में ना जाने कब सो गया था पर मानसी की आंखों से नींद कोसों मील दूर थी वो तो बस वीरेंद्र को ही एकटक निहारे जा रही थी और अपने सुनहरे कल के सपने खुली आंखों से देख रही थी।उसका मन बस एक ही गीत गुनगुना रहा था" युगों-युगों तक है साथ हमारा तुम्हारा........"
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत ही सकारात्मक कहानी 👏
Thanks a lot Charu ji💐💐
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