जिंदगी तो है एक अनजाना सफर
कब क्या हो जाए, किसको खबर
कब हो जाए कोई अच्छा खासा बेघर
कब चमक जाए किसी का मुकद्दर
सोचते यही सब, हो जाये अच्छे से उसकी बसर
कर ले पार ज़िंदगी की वो कठिन डगर
भक्ति प्रभु की और अच्छे कर्म बना देते हैं आसां ये सफर
नहीं लगता डर फिर हो चाहे कैसा अंजाना सफर
जिंदगी बन जाती है एक सुहाना सफर
मिल जाता है जब हमें कोई सच्चा हमसफ़र
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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