जीवन के साथ साथ चलता है ख्वाहिशों का सफर
ख्वाहिशें पूरी ना हों तो, आते हैं लोग मायूस नज़र
चाहते हैं अधिकतर धन दौलत ताकि हो अच्छे से गुज़र बसर
होनी नहीं चाहिये हमें केवल धन व भौतिक चीज़ों की लालसा मगर
हो तमन्ना यही ना झुके शर्म से कभी अपना सर
ना खानी पड़ें ठोकरें ,ना मिलें कांटे कभी अपनी डगर
ना डगमगायें पैर कभी, ना कड़वे बोल बोलें हमारे अधर
दूसरों की शौहरत और अमीरी से रहें हम बेअसर
ख्वाहिश हो यही सुख-चैन से कटे हमारा जीवन रूपी सफर
संग परिवार के रहें मस्त,साथ जीवनसाथी का रहे उम्र भर
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
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