आत्महत्या पर बेटे की ,मची थी घर में चीख पुकार
लिपटकर बेटे से रो रहे थे मां-बाप ज़ार ज़ार
पूछ रहा था पिता, कैसे हो गये तुम निराशा का शिकार
क्यों मान ली इतनी जल्दी तुमने जीवन से हार
क्यों अंदर ही अंदर तुम घुटते रहे
ग़म क्या था जिसे अकेले ही पीते रहे
किसी से तो बताते अपने मन की बात
ना बिगड़ते फिर इस कदर हालात
करते अगर हौंसले से समस्या पर प्रबल वार
जीत जाते तुम और समस्या मान लेती हार
क्या हासिल हुआ आखिर होकर इस तरह शांत
हैं स्तब्ध और परेशान सब,देखकर तुम्हारा दुखान्त
कर गये जीवन में हमारे तुम अंधकार
सोचते तो सही बूढ़े मां-बाप के बारे में एकबार
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
#1000कविता
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