बचपन सुहाना

बचपन की सुहानी यादें

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 25 Feb, 2021 | 1 min read
#1000कविता

याद आता है मुझको अपना बचपन सुहाना

मां की गोद में लेटना और उनका स्नेह लुटाना

प्यार से पापा द्वारा सिर को मेरे सहलाना

भाई बहनों के साथ हंसना ,लड़ना, धमाचौकड़ी मचाना

चोट लगने पर रोते हुए मां से चिपट जाना

उनका खुद विचलित होना पर हमें हिम्मत बंधाना

घर आते ही पापा के, शिकायती दरबार लगाना

पापा से डांट पड़ने पर भाई का मुझ से मुंह फुलाना

डांट मुझे पड़ने पर, भाई का खुश होकर जीभ चिढ़ाना

दुःखी होकर फिर लंबे-लंबे आंसू बहाना

फिर प्यार से मम्मी- पापा का मुझ को मनाना

महीने भर पहले ही अपने जन्मदिन का शोर मचाना

फिर मम्मी द्वारा तैयार ड्रेस को पहन जन्मदिन पर इतराना

मेरी कामयाबी पर घर में सबका झूम जाना

पूरी कॉलोनी में मम्मी का लड्डू बंटवाना

पूरे परिवार के संग हॉल में पिक्चर देखने जाना

लौटते हुए मशहूर चाट और कुल्फी खाते हुए आना

सगे संबंधियों के घर आने पर स्कूल से छुट्टी मनाना

"घर पर आवश्यक कार्य" की एप्लीकेशन स्कूल में भिजवाना

आता है याद सहेलियों के संग खेलना और खिलखिलाना

थोड़ी सी बात पर कट्टी और पल भर में अब्बा हो जाना

कच्ची आम्बी, कटारे और आग लगा चूरन चटखारे लेकर खाना

ना थी कोई प्रतिद्वंद्विता बस मकसद था दोस्ती निभाना

स्कूल में दंगा करने पर हाथ पर संटी खाना

फिर सहपाठियों द्वारा हंसना और मेरा मूड ऑफ हो जाना

लगाते जब वो उठक-बैठक या बनते मुर्गा तब मूड मेरा फ्रेश हो जाना

पिज़्ज़ा, पाव भाजी ,मोमोज नहीं जानता था तब कोई बनाना

चाय संग कचरी, पापड़, चिप्स का हाथ लगता था खजा़ना

घी, नमक लगी रोटी के स्वाद का ना था कोई ठिकाना

आता है याद कॉलोनी के लोगों संग पिकनिक और त्यौहार मनाना

पड़ोसी के घर लगे पेड़ से चोरी चोरी फल तोड़कर खाना

सच कितना अच्छा था अपना वो पुराना ज़माना

अब हूं दो बच्चों की मां, जीती हूं भरपूर ये भी ज़माना


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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