हिंदी की पीड़ा
हिंदी, आज हिंदी दिवस का निमंत्रण पाकर वैसे ही खुशी से उछल पड़ी जैसे करवा-चौथ पर पति अपनी महत्ता देखकर फूला नहीं समाता है. वो उठी और सोलह श्रंगार करके सभा-स्थल की ओर बढ़ गयी.वहाँ पर उसे विशिष्ट-अतिथि की कुर्सी पर बिठाया गया. ये देखकर उसका मन बल्लियों उछलने लगा.थोड़ी देर में एक-एक करके लोग हिंदी का बखान करने लगे लेकिन वो भी इंग्लिश में.ये देखकर उसका मन छलनी हो गया. उसे लगा जैसे विदेशी-भाषा के रूप में उस पर कोड़े बरसाये जा रहे हों.अब वो अपने को अपमानित महसूस करने लगी.वो सोचने लगी कि मैं तो समझती थी कि मैं हिन्दुस्तान की जान हूँ.पर अब मुझे साफ-साफ दिखाई देने लगा है कि अब मेरा अस्तित्व सिर्फ अनपढ़ों की वजह से ही रह गया है.पढ़े-लिखे लोगों को तो मेरा साथ ज़रा भी नहीं सुहाता.लेकिन मैं जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ?जब अपने ही घर में सम्मान नहीं मिलता तो बाहर वाला भी कोई नहीं पूछता. ये कटु सत्य है.और यही सब सोचते-सोचते उसकी आँखों में आँसू भर आये और वो कार्यक्रम के बीच से ही फिर कभी हिंदी-दिवस में ना आने का प्रण लेते हुए उठ खड़ी हुई. हिंदी को पीड़ा होनी स्वाभाविक थी क्योंकि जिसे राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए था उसका केवल हिंदी दिवस पर गुणगान किया जाता है वो भी केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए।काश हिंदी की पीड़ा को समझ,हिंदी से लगाव रखने वाले उसे उसका हक़ दिलवाने का बीड़ा उठा पाते तो हिंदी बद से बदतर हालात की ओर अग्रसर ना होती।
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
दुःखद है यह स्थिति
सच का दर्शन करवाती रचना
@Charu,bilkul durust farmaya aapne
@Vinita, Thanks a lot 💐💐
Please Login or Create a free account to comment.