उर्मि

अपने प्यार को पाना बड़ी बात है

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 15 Sep, 2021 | 1 min read
#Unique love




"उर्मि बाहर क्या कर रही है, दरवाज़ा बंद कर के अंदर आ।"


 "अभी आई मां रीना खड़ी है मेरे पास, आज स्कूल नहीं गई थी तो होमवर्क पूछने आयी है।" अब मां को असली बात कैसे बता देती कि रीना अपने भाई आशु की बातें बता रही है जिसे सुनने में उसे बहुत आनंद आ रहा है ।कुछ दिन से तो वह आशु को देख कर शरमाने भी लगी थी। कुछ अलग सी ही फीलिंग आने लगी थी। उसे देखना उर्मि को अच्छा लगने लगा था। अभी भी उसकी एक झलक पाने को ही तो घर के दरवाज़े पर खड़ी थी।



 तभी सामने से आशु साइकिल से आता दिखाई दिया और शायद उसका ध्यान भी साइकिल चलाने में नहीं बल्कि उर्मि की तरफ ही था क्योंकि वह ठोकर खाकर साइकिल से गिर गया था। उसके गिरते ही रीना और उर्मि उसकी ओर लपके और उसे सहारा देकर उठाया ।उसका स्पर्श पाकर उर्मि के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई थी ।आशु के सिर पर गूमड़ा पड़ गया था और पैर भी छिल गया था जिस से खून बह रहा था। रीना तो खून देखकर ही घबरा गई थी तब उर्मि ने ही सेवलाॅन से चोट साफ करके उसके दवा लगाई थी। चोट तो आशु को लगी थी पर दु:ख उर्मि को महसूस हो रहा था ।आशु एकटक उर्मि को ही देखे जा रहा था तो वह सकपका गयी। उर्मि की मम्मी जल्दी से हल्दी का गर्म दूध आशु के लिए ले आयीं जिसे पीकर दोनों भाई बहन अपने घर चले गए।


अगले दिन उर्मि, रीना को स्कूल चलने के लिए बुलाने गई तो दरवाज़ा आशु ने ही खोला और उसे देखते ही बोला" मुझे देखने ही आई है ना। "

"नहीं तो" उर्मि ने कहा ।


"अरे तो घबरा तो ऐसे रही है जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो ।"


सही में चोरी ही तो पकड़ ली थी उसने उसी को तो देखने आई थी पर मुंह से कैसे कहती ।तभी रीना तैयार होकर आ गई और दोनों स्कूल चल दिए। कुछ दिनों बाद उनके दसवीं के बोर्ड पेपर शुरू होने वाले थे स्कूल में छुट्टी पड़ गई थी ।अब उर्मि का रीना से मिलना भी कम होता था पर वह अपनी कोई डिफिकल्टी पूछने के बहाने से रीना के पास चली जाती वह नहीं बता पाती तो आशु चुटकियों में उसकी समस्या हल कर देता था। उर्मि को उसकी आंखों में अपने लिए प्यार दिखाई देता था पर उसने अपने मुंह से कभी कुछ कहा नहीं ।



अब उर्मि के बोर्ड के पेपर खत्म हो गए और आशु का भी आई.आई.टी. कानपुर में सिलेक्शन हो गया। उर्मि उसकी सफलता पर खुश तो थी पर आशु के शहर से दूर जाने पर दु:खी भी थी ।कानपुर जाने से पहले आशु उर्मि के घर सब से मिलने आया था और जाते हुए उर्मि से बोला था "मेरा इंतज़ार करेगी या नहीं, मेरी याद भी आएगी तुझे या नहीं"।


 "मुझे किसी की याद नहीं आती" ऐसा कहकर उसने आशु को विदा कर दिया था, पर वही जानती थी कि दिल पर कैसे काबू पाया था।


कई महीने बाद आशु कानपुर से आया तो उर्मि उसे देखकर बहुत खुश हो गई पर आशु तो चटखारे लगाकर उसे अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में बता रहा था पर उर्मि उसकी बातें सुनकर चुप ही रही जबकि जी तो जल भुन कर राख हो रहा था उसका ।आखिर उसके दिल पर अपना अधिकार समझती थी।उर्मि समझ तो रही थी की वह उसे चिढ़ाने के लिए ही ऐसी बातें कर रहा है ताकि मैं उससे कुछ कहूं पर उसने भी अपनी फीलिंग्स शेयर नहीं करी जबकि वह कल्पना में उसके संग ही जीने लगी थी। कितने सुनहरे सपने बुन डाले थे पर उसे ज़रा भी हवा नहीं लगने दी। दो चार दिन रह कर आशु कानपुर लौट गया था।


उर्मि का अब रीना से भी मिलना कम होता था क्योंकि उसने स्कूल भी बदल लिया था और कॉमर्स ले लिया था। पर आशु जब भी अपने घर आता तो उर्मि के घर भी ज़रूर मिलने आता था। इसी तरह समय बीतता रहा।


 आशु की पढ़ाई पूरी होने के बाद गुड़गांव में उसकी जॉब लग गई और उर्मि की बी.एस.सी. पूरी हो गई थी। जॉब लगने के कुछ समय बाद आशु उर्मि के घर जब मिलने गया तो उर्मि की मम्मी से बोला कि" घर वाले मेरे लिए लड़की देखने लगे हैं। एक से एक सुंदर लड़कियों के फोटो आ रहे हैं।" यह सुनकर उर्मि को धक्का लगा था ।अब उर्मि का मन बेचैन हो उठा उसका जी कर रहा था कि अभी आशु से अपने मन की बात बता दे पर फिर यह सोचने लगी कि क्या पता जिस गर्लफ्रेंड की बातें बताता था उससे ही इसके दिल के तार जुड़े हों और अगर मुझसे प्यार होता तो मुझसे कुछ कहता तो सही। मेरे दिल की बात सुनकर कहीं वह मेरी खिल्ली उड़ाने लगे ऐसा सोचकर उसने चुप ही रहना ठीक समझा ।


आशु उर्मि से बोला "अगर मन में कोई बात हो तो कह सकती हो कहीं ऐसा ना हो बाद में पछतावा हो" शायद वह उर्मि के चेहरे पर आने वाले मनोभावों को समझ चुका था। उर्मि बोली "जो फोटो आई हैं तुम्हें उनमें से कोई पसंद आई या नहीं ।"


आशु बोला "मुझे तो अब तक एक ही पसंद आयी है पर डरता हूं वह मुझे कहीं नापसंद ना कर दे।"


" तुम जैसे लायक और हैंडसम लड़के को कोई बेवकूफ ही नापसंद करेगी" उर्मि के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा। ऐसा कहते ही वह झेंप गई। अब आशु भी हिम्मत करके बोला तो "आपका क्या ख्याल है इस हैंडसम के बारे में ,क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बनना पसंद करोगी।" आशु के मुंह से ऐसा सुनते ही उर्मि खुशी से उछल पड़ी और बोली "ख्याल तो नेक ही है ।तुम्हारे दिल पर किसी और को काबिज नहीं होने दूंगी ।तुम्हें भगवान ने मेरे लिए ही बनाया है "।पर ऐसा कहकर अगले ही पल उर्मि उदास हो गई और बोली "तुमने प्यार का इज़हार करने में बहुत देर लगा दी अब यह मुमकिन नहीं ।अब मेरे पेरेंट्स भी मेरे लिए लड़का देख रहे हैं और मैं उनकी पसंद से ही शादी करना चाहती हूं ।मैं किसी भी कीमत पर उनका दिल नहीं दु:खाना चाहती हूं।"


" और अपने और मेरे दिल को दुखा सकती हो "आशु बोला ।


"हां इस चुप्पी की कुछ तो कीमत चुकानी ही पड़ेगी।"


 उर्मि की मां जो उन दोनों के प्यार के इज़हार की सारी बातें चुपचाप सुन रही थीं बोलीं आशु से अच्छा लड़का हमें ढूंढने से भी नहीं मिलेगा बस इसके पेरेन्ट्स भी तैयार हों तो बात बन सकती है। आशु बोला" वो तो कब से तैयार हैं इसे अपने घर की बहू बनाने को। लड़की देखने वाला आईडिया मेरी मां का ही था ताकि उर्मि के मन की बात पता चल सके ।"


बस फिर क्या था महीने भर बाद ही दोनों की शादी हो गई और उर्मि अपने प्यार के आगोश में समा गई।



मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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