कोनऊ ने नइ सोचो तो की पुरो देश इतने देना तक घर मे बंद रेहे। लेकेन ऐसो भओ कारण कछु भी होय लेकेन एक वायरस ने पूरे देश मे तालों लगवा दओ। लॉक डाउन में हम सबखा तनक परेशानी तो भई शुरू शुरू में देश मे खिबई विरोध भी भओ। लेकेन फेर सबने सामंजस्य बैठ ही गओ। ई लॉक डाउन में देश खो बचावे के लाने बड़ो जरूरी भी हतो। अब हम इकी जरूरत खा अच्छे से समझ गए है। अब तो सबजने लॉक डाउन खुलबे के बाद भी घर से काम करबो और घरे रे कर सावधानी बरतबो शुरू कर दओ है अब बिना मतलब बारे निकालबो कोनऊ नाइ चात। केबे को मतलब जो है के चाये जैसी परिस्थिति हो जाये हर कोनऊ धीरे धीरे उ परिस्थिति में सामंजस्य बैठा ही लेत है। जरुरी होत है इच्छा शक्ति और दृढ़ निश्चय की।
कोनऊ बड़ो फैसलो लेबे में शुरुआत में दिक्कत तो होत है लेकेन बाद में लोग समझन लगत है ऐसइ एक फैसलों और लेबे की जरूरत है कि देश की पूरो पढ़बो लिखबो हमाई मातृभाषा में होय औऱ नोकरियन के लाने अंग्रेजी की कोनऊ जरूरत न होय। कये से अंग्रेजी हर आम आदमी पढ़ और समझ नाइ पाउत है सो कम से कम ऐसी नोकरी जिमे आम जनता से ज्यादा सम्पर्क होत है उमें तो अंग्रेजी बंद कराई सकत है।
हमने शुरू से जेइ सुनो है कि ज्ञान विज्ञान की पढ़ाई हिंदी या कोनऊ दूसरी भाषा मे नाइ हो सकत है लेकेन का सई में अपनी हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाएं वाकई ऐसी है कि उनसे छोटे बच्चन खा भी नाइ पढ़ाओ जा सकत। अब तो देश मे ऐसे हालात है कि स्कूलन में छोटे छोटे बच्चन से भी अंग्रेजी में ही बोलो जात भले उने कछु समझ मे ना आये। आज कल ऑनलाइन क्लासन में भी टीचर पुरो अंग्रेजी में ही बोलत है चाहे हिन्दी विषय ही काय न होय। जरा ई बारे में जरूर सोचिए। इके लाने सबखा एकजुट होके ही कोशिश करने आहे। मन मे सयंम और बदलाव की इच्छा शक्ति होय तो सबकछु संभव हो सकत है।
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