आज काल कोरोना के कारण लोगन में डिप्रेशन भी बड़ो बढ़ गओ है। मतलब के हमे कोरोना के संगे संगे डिप्रेशन से भी बचबो जरूरी हो गओ है। अछ्यो खासो आदमी अचानक ख़ूबउ गुस्सा करन लगे, बिना बातन के कोनऊ आदमी अच्छे से हाथ धोउत है, मास्क लगाउत है, सोशल डिस्टेंसिंग रखत है सो उ आदमी केवल खुद खा नई बल्कि अपने संगे कई जनन खा बचा रओ है। केबे को मतलब जो कि हमे सेवा करबे के लाने कोनऊ ज्यादा बड़ो काम या मेहनत नई करने। खुद खो डिप्रेशन से बचावो भी अपनन कि सेवा ही होत है कये से आपके संगे आपको परिवार भी जोड़ो है। कछु लोगन की जा परेशानी रात है के बे सेवा तो करबो चाहत लेकन उने समझ नोइ आउत की का करने और कैसो करने।
हम चाये जब बदलाव की बाते करत है फलाना ऐसा है फलाना वैसा है। हम हमेशा बदलाव दूसरन में लाबे कई सोचत है पर खुद उ पे अमल नइ करत है। समाज और दुनिया मे बदलाव ओइ ला सकत है जिमे पेला खुद खा बदलबे की क्षमता है। जित्तो हम खुद खा बदलबी ओतनइ दूसरे में बदलाव लेया सकत है। सेवा हरएक चीज में समाई है। अगर हम कोनऊ से अच्छओ व्यवहार करत है, कोनऊ से अच्छओ रिश्तो रखत है, अपने आचरण और बातों में नम्रता रखत है बा भी एक सेवा ही है। अपने कारण कोनऊ दुखी न हो जा भी एक सेवा ही है।
दूसरन के लाने अच्छओ करना, उनके लाने केवल शब्दन से नाइ बल्कि मन से भी अच्छओ सोचना जे भी सेवा है। आज के हालात में डॉक्टर, नर्सेस, पुलिस, सफाईकर्मी जे सब अपनो जीवन और अपने परिवार खा दांव पे लगा के हमाई सेवा कर रये तो का हम दूसरन के लाने अपने अहम को नेचे नाइ रख सकत है का?
सेवा असल में का है इपे एक बार विचार जरूर करियो। धन्यवाद
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