

जागरण
ये धरती, ये प्रकृति..... ना जाने कितने राज़ छुपे हैं समय के गर्भ में..... कितनी ही घटनायें घटती हैं और जैसे समुद्र की अथाह जल राशि में उठती-गिरती लहरों का लोप हो जाता है वैसे ही ये घटनायें भी भूत काल के या इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए लोप जाती हैं..... पर क्या हो जब ऐसी ही किसी ऐतिहासिक घटना के कारक..... दो व्यक्ति एक नए रूप, नए अवतार में फिर से वर्तमान में एक-दूसरे के आमने-सामने आते हैं..... ये है ऐसी ही एक कहानी .....कार्तिका और विराट की।
जागरण कहानी: उसके विषय में एक महत्त्वपूर्ण चर्चा और लेखिका के दो शब्द
लेखिका के अपने विचार
जागरण भाग-1
ये धरती, ये प्रकृति..... ना जाने कितने राज़ छुपे हैं समय के गर्भ में..... कितनी ही घटनायें घटती हैं और जैसे समुद्र की अथाह जल राशि में उठती-गिरती लहरों का लोप हो जाता है वैसे ही ये घटनायें भी भूत काल के या इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए लोप जाती हैं..... पर क्या हो जब ऐसी ही किसी ऐतिहासिक घटना के कारक..... दो व्यक्ति एक नए रूप, नए अवतार में फिर से वर्तमान में एक-दूसरे के आमने-सामने आते हैं..... ये है ऐसी ही एक कहानी .....कार्तिका और विराट की।
#Scribble दर्द द्रौपदी का
महाभारत का कलंक उस द्रोपदी के सर सबने मढ़ा था। उस अग्नि पुत्री द्रोपदी को बांटा गया पांच पांडवों में था, उस पल द्रोपदी के मन का दर्द जाना किसी ने भी न था , जंगलों में भटकती पांडवों संग द्रोपदी के दर्द का जाना किसी ने न था मामा शकुनि की कुटिल चालों का कुछ गुमान धर्मराज को न था क्या कुसूर था उस द्रोपदी का था जो हारा उसे जुएं में गया था केशों से घसीटी गयी निर्वस्त्र करने को बेताब दुशाशन बड़ा था क्या कसूर द्रोपदी का था ,भरी सभा में वेश्या उसे पुकारा गया था