आज सुबह से ही वैलेंटाइन डे के उपलक्ष्य में एक से एक सुंदर रोमांटिक गीत रेडियो पर गूंज रहे हैं। इन्हीं गीतों को सुनते-सुनते मुझे भी अपने वैलेंटाइन यानि अपने प्रिय पतिदेव के बारे में कुछ लिखने का ख्याल आया। आधुनिक पीढ़ी के नये जोड़े की तरह हम एक दूसरे को हर समय लव यू जानू , मिस यू जानू तो नहीं बोलते हैं ,लेकिन प्यार का वो ज़ज्बा तो यकीनन किसी भी तरह से कम नहीं है | आज से पूरे 20 वर्ष पहले हम दोनों ने भी अपने प्यार भरे सफर की शुरुआत की थी, लेकिन लगता है जैसे कल की ही बात है ।
कहने को तो एक छोटे भाई के साथ चार लोगों का छोटा सा परिवार था मेरा लेकिन सही मायने में एक बहुत विस्तृत परिवार से थी मैं। अपने दादा दादी , नाना नानी का पूरा लाड़ प्यार मिला था। चाचा, चाची, बुआ , मामा , मौसी और ढ़ेर सारे मस्तीखोर भाई बहनों की टोली से भरा पूरा परिवार। वहीं पतिदेव के परिवार में डैडी (ससुर जी), दो बड़े भाई भाभियाँ , दीदी जीजी जी और सबके एक से दो बच्चे बस । मेरी शादी हमारे जेनरेशन की पहली शादी और इनके परिवार की ये आखिरी शादी !! ये तो हुई पारिवारिक विभिन्नताँए । हम दोनों भी एक दूसरे से काफी अलग थे। एक ओर मैं जहाँ महा वाचाल वहीं ये बिल्कुल शांत , मैं बहिर्मुखी तो ये खुद में ही मगन रहने वाले। मुझे गाना, लिखने , पेंटिंग का जितना ही शौक इन्हें उससे कोई खास लगाव नहीं था। वहीं इनके इन्टरेस्ट की बातों खेल खिलाड़ी और दुनियाभर की खबरों में मेरी कोई रुचि नहीं थी। लेकिन ग्रहों नक्षत्रों का ऐसा संयोग बना और हमारी शादी पक्की हुई एक अरेंज्ड मैरिज ....और Opposite attracts नियम के तहत हमारी गृहस्थी की गाड़ी चल पड़ी ।
शादी हुई और दस दिनों के बाद ही हम दोनों निकल पड़े अपनी नई मंजिल की ओर प्यार की भीनी खुशबू के साथ।पहली बार अपने प्रियजनों से इतनी दूर बैंगलोर , जहाँ एक तरफ नये शहर में जाने का रोमांच था वहीं दूसरी ओर अजनबी समान हमसफर का साथ थोड़ा मन को सशंकित भी कर रहा था। अब पतिदेव को अजनबी कहूँ तो नयी पीढ़ी जरूर चौंक जाएगी लेकिन क्या करूँ यहीं सच है। खैर, दो दिन के ट्रेन के सफर के बाद हम बंंगलुरु पहुँचे। पड़ोसियों ने बड़े आत्मियता के साथ स्वागत किया, मन में तसल्ली हुई पतिदेव से सब काफी प्रभावित थे। दूसरे दिन सब कुछ व्यवस्थित कर ही रहीं थी कि पास में रहने वाली अज्जी (यहाँ दादी को अज्जी बोलते हैं) आईं मुझसे मिलने। आते ही मुझसे बोली " your husband is a gentleman. Lucky girl " . और कल वो कहीं व्यस्त रह गई इसलिए मेरे स्वागत के समय नहीं थी , इसका अफसोस करने लगीं। उनकी बातें सुनकर मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई और मन में जो भी 1-2% आशंका थी ,सब पर पूर्ण विराम लग गया।
बंंगलुरु आने पर सपनों को तो जैसे पंख लग गए। शुरुआती दिन तो इन्द्रधनुषी थे हर दिन एक नये रंग सा ! और तभी आहट सी हुई नये सदस्य के आने की और तब शुरू हुई शादीशुदा जिंदगी की असली कहानी।
बहुत अच्छा रहा 9 महीनों का ये सफर। महाशय को जहाँ से जो भी जानकारी मिलती ,उस पर अमल करने की कोशिश करते। मसलन किसी ने बताया कि इन दिनों नारियल पानी अच्छा होता है तो मजाल है कि एक भी दिन मैं नारियल पानी नहीं पीऊँ। ऑफिस में किसी ने कहा नारंगी खिलाओ तो मैं खाती गई , केसर खाओ तो वो भी खाया। इन सब पैंपरिंग के बाद जीवन की सबसे बड़ी खुशी हमारा बेटा आ गया। अमूमन नवजात शिशु को पापा लोग गोद में लेने में डरते हैं , लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। मुझसे पहले इन्होंने हमारे बेटे को गोद में लिया।उसी समय मैं समझ गई कि आने वाला समय बहुत कठिन नहीं होगा।
दो साल बीतते बीतते हमारा दूसरा बेटा भी आ गया। पतिदेव बेटी के लिए मेरी प्रबल इच्छा देख चुके थे। इसलिए उन्होंने मुझे मानसिक रूप से तैयार करवाया कि अगर इस बार भी बेटा हुआ तो मैं सहज ही रहूँ । और यहीं हुआ ।जब डॉक्टर ने बताया कि बेटा हुआ तो मैंने हँसकर कहा ,अच्छा है , तीनों के बीच centre of attraction मैं ही रहूँगी।
'एक संंतुुलित परिवार में ही बच्चे का स्वस्थ विकास होता है'.....और यहीं हैं मेरे प्रिय पतिदेव के जीवन की टैग लाईन । तो हमारे जीवन की प्राथमिकता में बच्चे सबसे ऊपर आ गए। परिवार से दूर रहने के कारण बच्चों का लालन पालन हमदोनों ने ही मिल जुल कर किया। घरेलू कामों में शून्य रुझान है मेरे पतिदेव का लेकिन बच्चों से संबंधित सभी काम इतनी जिम्मेदारी से निभाते कि दंग रह जाती मैं। इस बीच कितनी ही बार हमारे बीच टकराव की स्थिति भी आती लेकिन हमने यह भी तय किया था कि बच्चों के सामने लड़ेंगे नहीं ,तो भई अब लड़ना बहुत जरूरी है तो भी इंतजार करो बच्चों के सोने का ......और जब बच्चे सो गए तो इतनी ऊर्जा बची कहाँ कि लड़ाई शुरू की जाए ! तो ऐसे बीते प्रारंभिक साल नन्हें मुन्नों के साथ ।
बच्चे जब थोड़े बड़े हुए बाप बेटों की एक गैंग बन गई। मेरे साथ पूरा दिन बिताने के बाद दोनों बच्चे शाम में डैडी के आने का बेसब्री से इंतजार करते।फिर शुरू होता ब्वायज टाइम। पूरे घर में हो- हल्ला , कार रेस , साइकिलिंग और क्रिकेट मैच शुरू हो जाता। धीरे धीरे कब ये शोरगुल गप्पबाजी और साथ क्रिकेट , टेनिस खेलने , देखने में या डिस्कवरी और नैशनल जियोग्राफिक चैनल देखने में बदल गया पता ही नहीं चला।
आज भी मुझे याद है मेरे घर में पिता पुत्र खिलौनों से खेलने की अपेक्षा उसकी मैकेनिज्म समझने में ज्यादा रुचि दिखाते। पतिदेव अपनी इंजीनियरिंग की पढा़ई को अपने चार साल के बेटे के साथ ही बाँटनी शुरू कर देते थे। कई बार ऐसा होता हम खरीदारी करने मार्केट गए हुए हैं , मैं कपड़े, ज्वैलरी , जूते चप्पलें निहारती और देखती कि तीनों दुकान के बाहर लाईट पैनल, जेनरेटर या ऐसी ही किसी अजीब सी मशीन की जानकारी ले रहे हैं।अब तो दोनों बेटे बड़े हो गए। आए दिन अपने ज्ञान का पिटारा खोल बैठते हैं और अंतिम ब्रह्म वाक्य होता है'-- ये तो डैडी ने ही बताया था बहुत पहले ।'
परिवार में माँ की क्या अहमियत है , इसे बताने में पिता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। आज मेरे बेटे जो मेरा इतना सम्मान करते हैं वो उनके पिता के ही कारण है। इन्होंने मातृत्व को हमेशा गरिमामय और श्रेष्ठतम बताया बच्चों के सामने। खुद मेरी किचेन में हेल्प भले ही कम करें लेकिन बच्चों के साथ हमेशा मेरे लिए खड़े रहे। मम्मी को कहीं अकेले नहीं छोड़ना है , इसकी सीख दे दी।
तो ऐसे हैं मेरे पतिदेव ,मेरे बच्चों के डैडी। इनका ऐसा साथ पाकर बच्चे कब नासमझ से समझदार बन गये पता ही नहीं चला !
जिंदगी तू बड़ी खूबसूरत है,
जरूरत है सफ़र में हमसफ़र का हसीं होना !!!!
धन्यवाद.....तिन्नी श्रीवास्तव।
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