दिल का रिश्ता

सबके साथ हमारा खून का संबंध नहीं है लेकिन दिलों के तार कितनी मजबूती से जुड़े हुए हैं !!

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Tinni Shrivastava
Tinni Shrivastava 04 Mar, 2020 | 1 min read

दिल का रिश्ता

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पूरे चार महीनों के बाद हम पति पत्नी भारत लौटे हैं। पोती के पहले जन्मदिन पर अमेरिका से बेटे का बुलावा आया था। मैंने तो उत्साह और उमंग में शहर की पूरी दुकान खरीद ली थी। अब तक सिर्फ बेटे के लिए खरीदारी की थी। लड़कों के कपड़ों में भला कितनी वेरायटी मिले ?....ले देकर वहीं शर्ट पैंट्स, गिने- चुने खिलौने। पर अब मुझे अपनी पोती के लिए उपहार लेने थे। पति ने पूरी छूट दे रखी थी कि कर लो अपने शौक पूरे। रंग- बिरंगे फ्रॉक, पायल, कान की बालियाँँ और गुड़िया-गुड्डे...... ना जाने मैंने कितनी जरूरी बेजरूरी सामानें इकट्ठी कर लींं। पतिदेव सिर्फ मंद-मंद मुस्कुरा कर रह जाते। शायद मेरी तरह वो भी पोती पर अपना प्यार लुटाने को बेचैन थे।

हवाई जहाज पर सवार होकर हम सात समंदर पार पहुँचे। पहले भी एक बार जाना हुआ था, पर इस बार की बात कुछ और थी। बेसब्री अपनी पराकाष्ठा पर थी। मैं अपनी अगली पीढ़ी को देखने जा रही थी, अपने जान से प्यारी पोती को। कैसे समय कटे और मैं उसे अपने अंक में भर लूँ।

पर , सब कुछ कितना बदल गया था। मैं अपनी गुड़िया को गोद में लेने और उसके साथ खेलने को तरस गई।बहू ने पायल और कान की बालियाँँ किसी खास मौके पर पहनाएगी, यह कहकर अंदर रख दिया और अन्य उपहारों को समेट कर स्टोर रूम में रख दिया। एक सुबह तीनों निकल जाते और शाम में ही आते। हमने कहा भी कि जब तक हम हैं गुड़िया को डे केयर में ना भेजो। पर वे कहाँ सुनने वाले थे।

" माँ ,इसकी आदत बिगड़ जाएगी। अभी तुम और पापा हो , तुम्हारे जाने के बाद ? इसलिए जैसा चल रहा है चलने दो। आप दोनों लाइफ एन्जॉय करो।घूमो, फिरो, मजे करो। यहाँ आपको किसी चीज की चिंता नहीं करनी है ।"

बस , पूरे दिन घर में हम दोनों बच जाते और अजनबियों के देश में परायेपन का दंश झेलते। कैलेंडर में दिन देखते कि कब इस स्वार्गिक काल कोठरी की अवधि समाप्त हो और हम अपनी मातृभूमि पहुंचे।

आज की सुबह बिल्कुल अलग है। पूरा घर गौरैयों की चहचहाहट से गूँज रहा है। आँगन में बीसों गौरैया खुश होकर चावल के बिखरे दाने चुग रहीं हैं, मानो मेरा स्वागत कर रही हों कि हम सब बेसब्री से आपका ही तो इंतजार कर रहींं थीं ।अड़ोसी पड़ोसी सभी जुट गए, हमारा हाल समाचार लेने। कोई चाय लेकर आया है तो कोई खाने पर घर बुला रहा है। मेरी मुँहबोली पोती, जिसे मैं रोज पूजा के बाद किशमिश देती हूँ अपनी कटोरी के साथ आ गई है ।दादी कहीं कम किशमिश न दे दें उसके नन्हें हाथों में, इसलिए कटोरी लेकर आई है। मुझसे थोड़ी नाराज भी है...... "आप क्यों चली गई थी इतने दिनों के लिए ? मुझे मम्मा ने किशमिश नहीं दिया। मैंने आपको और दादू को बहुत मिस किया ! अब बिल्कुल नहीं जाना ।"

मैंने उसे कलेजे से चिपका लिया। दिल में एक अजीब सा सुकून मिल रहा था। कितनी फिक्र है यहाँ सबको हमारी।

"अब इतना लंबा कभी नहीं जाऊँगी मेरी बच्ची। "

इन सबके साथ हमारा खून का संबंध नहीं है लेकिन दिलों के तार कितनी मजबूती से जुड़े हुए हैं !!

तिन्नी श्रीवास्तव,

मौलिक एवं स्वरचित

बैंगलोर ।

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Tinni Shrivastava

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