दुनिया एक रंगमंच हैं

दुनिया एक रंगमंच हैं

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Sanoj Kumar
Sanoj Kumar 29 Jul, 2020 | 1 min read
world poetry

दुनिया एक रंगमंच हैं,

यहाँ कौन अपना कौन पराया हैं।

एक दिन तो हम सभी को,

अपना सबकुछ यही छोड़ जाना हैं।


क्यों लड़ते-झगड़ते हो,

एक बीघा ज़मीन के लिए?

कफ़न तक नहीं मिलेगा,

अपने साथ ले जाने के लिए।


लोग होते हैं भिन्न-भिन्न,

जबकि आते हैं सब एक वतन से।

कोई सबको परेशान कर देता हैं ,

तो कोई जाना जाता है अपने नाम से।


जाति- धर्म ऊँच-नीच,

ये सब तो हम इंसान बनाते हैं।

ऊपर से तो हम बस,

खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ जाते हैं।


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Sanoj Kumar

thehiddenwritersk

Comments

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  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    वाह

  • Sanoj Kumar · 4 years ago last edited 4 years ago

    Sukriyaaaa

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