जो मरता नहीं कभी,
अमर अविनाशी रहता है।
एक समय में एक शरीर पर ही,
वो वास करता है।
जीवन रूपी ये चक्र को
वो चलाने का काम करता है।
यमराज के पास से आता है,
मांँ की कोख में प्राण देता है।
शरीर तो है मिट्टी जैसा,
इसमें जान तो नफ़्स भरता है।
अगर छोड़ दिया साथ इसने तो,
फिर शरीर को जला दिया जाता है।
कोई कहता ईश्वर का वास है,
तो कोई कहता शैतान की है छाया।
सब तो इसी के वजह से होता है,
शरीर तो है बस मोह माया।
सब प्यार इससे करते है,
देह से तो सिर्फ आकर्षित होते है।
प्रेम यदि सच्चा हो तो,
अगले जन्म में भी वो मिला करते है।
रूह से रूह का मिलन होता है,
तभी तो दो जिस्म एक जान कहलाते है।
बदन तो है बस एक सहारा,
हमे पहचानने में काम आते है।
अच्छा कर्म या बुरा कर्म,
हमेशा ये आत्मा करवाता है।
जो आपको अंदर तक जाने,
वहीं तो आपका सच्चा प्रेमी कहलाता है।
लोगो को बोलते सुना होगा,
पता नहीं ये किस जन्म का पाप है।
यह पाप पुण्य तो इसपर निर्भर है,
इस जन्म नहीं तो अगले जन्म, होता इंसाफ है।
बड़े-बुजुर्ग अक्सर कहते है,
हमेशा अच्छे कर्म करने की बातें।
क्योंकि आत्मा तो भूल जाती है,
पिछली जन्म की सारी यादें।
दादा-दादी या मांँ-बाप,
सब रिश्तों को सिर्फ शरीर निभाता है।
आत्मा तो अमर अविनाशी है,
हर जन्म अलग-अलग रिश्तेदारों को पाता है।
शरीर में रहता है तो,
सब इसे इंसान मानते है।
यदि शरीर से निकल जाए तो
लोग इसे देख काँप जाते है।
जिस तरह इस बदन के बिना,
इसका कोई अस्तित्व नहीं है।
उसी प्रकार कर्म के बिना,
हमारा कोई व्यक्तित्व नहीं है।
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