नारी कोई सौदा नहीं

Women's day special poem

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Sanoj Kumar
Sanoj Kumar 08 Mar, 2021 | 1 min read
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इन्हें बेच कर तुम कमाना चाहते हो,

यह नहीं समझते तुम इनसे ही जन्म लेते हो।

तुम एक स्त्री का भाव नहीं बल्कि,

अपने मां - बहन को बाजार में उतारते हो।


तुम्हारे बुरे वक़्त में यह तुम्हारा साथ देगी,

औरों के तरह यह ना रिश्ते भूलेगी।

तुम भले ही इनके बुरे वक़्त में इन्हे छोड़ दोगे,

पर यह तुम्हारे हर वक़्त में पास रहेगी।


तुम इनके दर्द का अंदाजा नहीं लगा सकते,

असहनीय कष्ट सह कर तुम्हे पिता बनाती है।

हां तुम भले ही पैसों से मदद कर सकते हो,

पर एक मां ही एक बच्चें को इंसान बनाती है।


यौवन के पहले जबरन विवाह करा देते हो,

पुरुष उम्रदाज, पर स्त्री नाबालिक ढूंढते हो।

खुद संसार का तनाव झेल नहीं सकते,

और बंद कमरे में इनका शोषण करते हो।


आज की स्त्री हर क्षेत्र में नाम कमा रही है,

लड़की हो या औरत सब काम कर रही है।

इनका काम भले ही आप ना कर सको,

पर यह मर्दों का काम भली भांति कर रही है।


रहता है इन्हें महीनों के पांच दिन दर्द,

फिर भी यह किसी को पता ना चलने देती है।

हर रोज़ के भांति इन दिनों भी,

यह अपना दर्द भूल काम करते रहती है।


टूट जाओ तो आपका हौंसला बढ़ाती है,

यह झुक कर भी सबसे सम्मान पाती है।

आप इनको लाख आगे बढ़ने से रोको पर,

सबसे लड़ यह अपना परचम लहराती है।


यह अब किसी की मोहताज नहीं,

ना अब सिर्फ पुरुषों से इनकी पहचान है।

इन्होंने हर क्षेत्र में अपनी क्षमता दिखा,

बतला दिया कि यह कितनी महान है।

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Sanoj Kumar

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