मैं कविता नहीं रंगो की बहार लेके आई हूँ,
साँसो में एक अहसास लेके आई हूँ।
बुझते दीपक की रोशनी में मिलते हैं नभ-शेष का संदेशा लाई,
होली आई, होली आई,
ये फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर खुशियों की बाहर लाई देखो।
अपने पराये सब मिल गले से होली की संगति,
प्यार के रंग में डूबे रंग-संगति।
हरा, पीला, लाल, गुलाबी सबके मन को भाता,
उम्मीदों के रंग में रंगा सपना एक नया उल्लास को लाता है।
सूरज की पहली किरण जब दरवाजे पर दस्तक देती है,
आज क्या अच्छा काम है? कैसे करें मदद? रहता है सबके मस्तक।
सोच-सोच में डूबे हम,
कल छोड़ आज मैं जीत गया, हम न किसी से कम।
मुस्कुराती हुई निगाहों में पंख फैला मिली रंगे को पहचान फिर,
लेकिन मन की बाते जहाँ शब्दों की मोहताज होती है? फिर से।
हवाएँ भी कर रहे हैं रंग
यह व्यस्त दुनिया में देखों किसी को ऐसा फ्रिक होता है।
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